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________________ मूलाराधना गाथा २९० प जीवनिकाय और हिंसादिकोंका स्वरूप जानकर और उनके ऊपर श्रद्धा कर यदि सर्व प्रकारसे अथवा एकदेशसे हिंसादिकोंका त्याग करनेपर उस त्यागको बतसंज्ञा प्राप्त होती है. यही अभिप्राय ' निःशल्यो व्रती' इस सत्र में है. मिथ्याशल्य, मायायल्य और निदानशल्य एसे तीनशल्य हैं. ऐसे तीनशल्याम जो रहित है वहीं निःशल्य है. निःशल्यको ही व्रती कहना चाहिये. जो शल्यसहित है वह व्रती नहीं है, यदि जीवादि पदाथापर श्रद्धा न हो तो मिथ्यात्यशल्यका त्याग नहीं हो सकता. जीवादिपदार्थीका ज्ञान यदि न होगा तो मम्यग्दर्शन नहीं होगा इसलिये सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान युक्त प्राणीको ही बतियना प्राप्त होता है ऐसा सूत्रकारने कहा है. सही अभिणय प रं परें भी कहा है-- “मुनिक अहिंसादि पंचमहाव्रत और श्रावकोंके पांच अणुव्रत ये सम्यग्दर्शनके विना नहीं होते हैं. इसलिंग प्रथमतः आचार्याने सम्यक्त्वका वर्णन किया है." मुनिराज मनसे, वचनसे और शरीरसे हिंसादिक पाप कार्य वयं नहीं करते, न कराते और न अनुमोदन देते हैं. यावज्जीव नउ प्रकारसे पापोंका त्याग करते हैं. परंतु सम्यग्दृष्टि गृहस्थ मूलगुण अथवा उत्तरगुण अपनी शक्त्यनुसार ग्रहण करता है और यावज्जीव किंवा अल्पकालपर्यंत पालता है. मैंने पूर्वकालमें हिंसादिक कार्य किये, हाय मैंने यह दुष्ट कार्य किया, मैंने दुष्ट संकल्प किये और मैंने हिंसादि प्रवृत्तिकर भाषण किया. यह मैंने अयोग्य किया है इस प्रकार निंदा और गहाके द्वारा वर्तमान कालीन असंयम बुरा समझता है. पूर्वमें जैसा असंयम मैंने किया था अथवा अन जो असंयम प्रवृत्ति हुई ऐसी असंयम प्रवृत्ति मै आगामिकालमें नहीं करूंगा, इस रीतीसे वह श्रावक पापोंका प्रत्याख्यान करता है. अब गृहस्त्रों के हिसादि त्यागरूप परिणामाके विकल्पोंका विचरण करते हैं स्थूल हिमादिक पांच पापोंको कृत, कारित, अनुमत ऐसे तीन विकल्पास तथा मन, वचन और शरीरके विकल्पोंसे त्याग नहीं करते हैं. उनका क्रम--मैं मनसे स्थूल हिंसादिक पंच पाप नहीं करूंगा, तथा वचनसे और शरीरसे भी नहीं करूंगा. यह कृत के तीन भेद हैं, मनके द्वारा मैं स्थूल हिंसादिक पांच पाप नहीं कराऊंगा, तथा वचन और शरीरके द्वाग भी नहीं कराऊंगा. ये कारितके तीन भेद हैं. मनके द्वारा स्थूल हिंसादि पापोंको सम्मति मैं नहीं देऊंगा. वचन और शरीरके द्वारा भी मैं सम्मति नहीं देऊंगा इस तरहसे तीन प्रकारकी सम्मति
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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