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रश्चना
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व्यक्तिमें सिद्ध शब्दकी प्रवृत्ति होना वह नाम सिद्ध है.
शंका-स्वरूपकी उत्पत्ति सिद्ध शब्दकी प्रवृत्तीका निमित्त होता है. सम्यक्त्वादिगुण सिद्ध शब्दकी प्रवृतीका निमित नहीं होते हैं. फिर यहां पर सम्यक्त्वादिगुणों को सिध्द शब्द की प्रवृत्तीका निमित्त क्यों बताया इस शंकाका उत्तर आधार्थने ऐसा दिया है
२ ठीक है. सम्यक्त्वादि गुणोंके स्वरूपकी निष्पात्री निमित्तसे हो जाती है, ऐसा हम मानते ही हैं. पूर्वभाव प्रज्ञप्ति नयकी अपेक्षा अर्थात् सिध्दत्व प्राप्त होनेके कालमें अन्तिम शरीरमें प्रविष्ट जो आत्मा वह दूधमें मिले हुवे पानी के समान सीकर था. यही रमा शरीरका नाश होनेपर भी अन्तिम शरीरसे किंचित् न्यून आत्मप्रदेशोंकी आकृतीसे युक्त है, ऐसा बुध्दीमें आरोपण कर ' वही यह है' ऐसा समझकर स्थापन की गई जो मूर्ति उसको स्थापना सिध्द कहते हैं.
३ आगम द्रव्यसिध्द-सिध्दों का स्वरूप प्रकट करनेवाले ज्ञानकी परिणती के सामर्थ्य से युक्त जो आत्मा उसको आगम द्रव्य सिध्द कहते हैं. अर्थात् जिस आत्मा के ज्ञानमें सिध्दों का स्वरूप जाननेका सामर्थ्य प्राप्त हुया है परंतु वर्तमान अवस्थामें वह सिद्धोंको नहीं जानता है, ऐसे ज्ञानसे युक्त आत्माको आगमद्रव्यसिध्द कहते हैं. ४ नो आगम द्रव्य सिध्द इनके ज्ञायक शरीर, भावि तथा तद्व्यतिरिक्त ऐसे तीन भेद हैं,
५ ज्ञायक शरीर सिध्द-सिध्दोंके स्वरूपका प्रतिपादक ऐसे सिद्ध प्राभृत शास्त्रको जाननेवाले जीवका भूतकालीन, भविष्यत्कालीन व वर्तमान कालीन जो शरीर वह सिध्द स्वरूप जाननेमें जीवको मदत करता है अतः ऐसे त्रिकाल गोचर शरीरको ज्ञायक शरीर सिध्द कहते हैं.
६ जिस आत्माको भविष्यकालमें सिध्दत्वपर्याय प्राप्त होगा वह आत्मा भाविसिध्द है.
७ तद्वयतिरिक्तसिध्द यह भेद होता नहीं, क्योंकि, कर्म और नोकर्म ये सिध्दत्वके कारण नहीं हैं. कर्म, नोकर्म जबतक जीवके साथ रहेंगे तबतक सिद्धत्व प्राप्त नहीं होता.
८. आगम भावसिध्द - सिध्देप्राभृतमें जो सिद्धोंका स्वरूप लिखा है उसको वर्तमान कालमें जाननेमें उपयुक्त हुए ज्ञानको आगमभावसिध्द कहते हैं.
९ नो आगमभावसिध्द - क्षायिक ज्ञान दर्शनसे युक्त, अव्याबाध स्वरूपको प्राप्त हुवा, लोक शिखर में
अध्याय
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