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मूलाराधना
आश्वासः
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पर्यायको आत्मा कारण है वैसे उस आत्माका शरीर भी प्रतिक्रमणपायको कारण है. इसलिये उसका त्रिकालगोचर शरीर भी प्रतिक्रमणशब्दसे वाच्य होता है.
भाविप्रतिक्रमण-चारित्रमोहनीय कर्मके क्षयोपशमका सान्निध्य होनेसे जो आगे प्रतिक्रमणपाय धारण करेगा यह आत्मा भाविनातिक्रमण है.
___नो -- आगमद्रव्यव्यतिरिक्त प्रतिक्रमण-वयोपशमावस्थाको प्राप्त हुया जो चारित्रमोहकर्म बह तद्वयतिरिक्त प्रतिक्रमण है.
प्रतिक्रमणका जो ज्ञान बह आगमभावप्रतिक्रमण है मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन और मिथ्याचारित्र इनसे मैं विरक्त हुआ है ऐसा जो ज्ञान आत्मामें उत्पन्न होता है वह आगमभावयतिक्रमण है.
अशुभपरिणामोंके दोप जानकर और श्रद्धा कर उसके उलटे परिणामोंसे आत्मा जब परिणत होता है तब वह नो आगमभावप्रतिक्रमण है.
प्रश्न-सामायिक और प्रतिक्रमणमें क्या भेद है ? साबधमनवचन कायकी प्रवृत्तियोंसे विरक्त होना यह सामायिकका लक्षण है. और अशुभ मनोवाकायकी निवृत्ति होना यह प्रतिक्रमण है अर्थात् प्रतिक्रमण धार सामायिक इनमें कुछ भी भेद नहीं है। इसलिये छह आवश्यक क्रियाओंकी व्यवस्था कैसी होगी ? इस प्रश्नका उन्नर कोई विद्वान इस प्रकार देते है
सर्व सावायोगोंका मैं त्याग करता हूं' ऐसा वचन अर्थात् प्रतिज्ञा सामायिकम की जाती . हिंसादिकोंक भेद पृथक् न ग्रहण कर मामान्यसे सर्व पापोंका त्याग करना सामायिक है. और हिंसा, असत्य वगैरे भेदोंमें सावधयोगके विकल्प करके उससे विरक्त होना प्रतिक्रमण है. इस विषयके सूत्र का अभिप्राय यह है कि-मिथ्यात्वका त्याग करना, असंयमका अर्थात् उसके प्रभावसे उत्पन्न होनेवाले अतिचारॉका त्याग करना, कपायोंका तज्जनित अतिचारोंका त्याग करना तथा अप्रशस्त मनोवारकाय विषयक व्रतातिचारोंका त्याग करना यह भाव प्रतिक्रमण है. इस रीतीसे उपरके प्रश्नका कोई विद्वान उत्तर देते हैं परंतु यह उनका उत्तर अयोग्य है.
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.. योग शब्दसे वीर्यपरिणाम ऐसा अर्थ होता है. यह वीर्यपरिणाम वीर्यान्तराय कर्मके क्षयोपशमसे उत्पन्न ।