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________________ मूलारावना आश्वास: २७२ सहरसरूवगंधे कासे य मणोहरे य इयर य ॥ जं रागदोसगमणं पंचविहं होदि पणिधाणं ॥ ११७ ॥ उक्तं शब्दे रसे रूपे स्पर्श गंधे शुभेऽशुभे॥ रागद्वेषविधानं यत्तदाय प्रणिधानकम् ।। ११८ ॥ णोइंदियपणिधाणं कोधो माणो तधेव माया य ।। लोभो य णोकसाया मणपणिधाणं तु तं बजे ॥ ११८॥ मानमायामदक्रोधलोभमोहादिकल्पनम् ।। अनिद्रियाशेयमारनपनेक १११ इंद्रियमनःप्रणिधानपरिहारद्वारेण चारित्रधिनयं प्रपंचयितुं गाथात्रयमाह.. मूलारा-प्रणिधानं आत्मनः परिणामोऽत्र नेंद्रियादिनिरोधः । सदादि-मनोज्ञामनोज्ञशब्दादिविषयरागद्वेपपरिणतिः । गृलारा-पंचविध-भोत्रादीनामिष्टानिएशन्दादिविषयभेदान् । मूलारा-गोकसाया हास्यरत्यरातशोकभवजुगुप्सास्त्रीवेदवेदनपुंसकवेदाः । तं तदाद्वविधर्मेंद्रिविकमानसं व प्रणिधानं 1 बजे वर्जयेत् । चारित्रबिनयार्थीति शेषः । एतदपि गाधात्रय टीकाकारो नेच्छति ।। इंद्रिय और मन वश करनेसे चारित्रविनय होता है. इस नारित्रविनयका तीन गाथाओंमें आचार्य वर्णन करते हैं अर्थ- प्रणिधानके इंद्रियप्रणिधान और नोइंद्रियप्रणिधान ऐसे दो भेद हैं. आठ स्पर्श, पांच रम, दो गंध, पांच वर्ण और शब्द ये इष्ट और अनिष्ट ऐसे दो प्रकारके हैं. इनसे आत्मा में रागडे पकी उत्पत्ति होती है. इसको इंद्रियप्रणिधान कहते हैं. स्पर्शनेंद्रियप्रणिधान, रसनेंद्रिय प्रणिधान, घ्राणेंद्रिय प्रणिधान, चक्षुरिद्रियप्रणिधान, और श्रोत्रंद्रियग्रणिधान एमे पांच भेद हैं. क्रोध मान, माया-कपट, लोभ, हास्य, रति-उत्सुकता, अरति-तिरस्कार, शोक, भय, जुगुप्सा-अन्यके २४२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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