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मुलाराधना
विनय-श्रुतज्ञान और अतधर अर्थात् श्रुतकेवी इनके माहात्म्धका स्तवन करना. अर्थात् श्रुतभक्ति पढना चाहिय.
उपभान -विशप नियम धारण करना. जबतक यह अनुयोगका प्रकरण समाप्त होगा तबतक में उपनाम करूंगा अथवा दो उपवास करूंगा इस तरहसे संकल्प करना यह विनय अशुभ कर्मको दूर करता है.
बहुमानविनय--पवित्रतासे, हाथ जोडकर, मनको एकाग्र करके बडे आदरसे अध्ययन करना.
अनिश्चय----अपलाप करना निदव हैं. एक आचार्यके पास अध्ययन करके अन्य आचार्यका नाम लेना यह निहब है ऐसे दोपका त्याग करना अनिवविनय है. 'हमान व्यंजन, अर्थ, तदुभय विनय-शब्दको व्यंजन कहते हैं, शब्दका जो वाच्य यह अर्थ है. जस मनुष्य शब्दका वाच्य आदमी ऐसा होता है. शब्द और उसके अर्थको तदुभय कहते हैं. गाथामें बंजण, अस्थ, तदुभय इन शब्दाम द्वंद्वसमास किया है. सर्व द्वंद्वसमास विभाषासे एकरचनयुक्त होता है इस व्याकरणके नियमानुसार 'बंजण अत्य तदर्भय' इस समासमें एकवचन किया है..
शंका-यहां अर्थ शब्द स्वरादि व अल्पस्वर युक्त होनेसे बंजण इस शब्दके पूर्व उसका निवश होना चाहिये, इस शंकाका उत्तर ऐसा है-'सर्वतोऽभ्यर्हित पूर्व निपतति' इस परिभाषासे बंजण-शब्द अभ्यहित अर्थात महत्वयुक्त होनेसे वही अर्थशब्दके पूर्वमें प्रयुक्त किया है. व्यंजनको अर्थात् शब्दको महत्त्व-प्राधान्य क्यों है ? इस प्रश्नका उत्तर यह है कि शब्दके द्वारा हम दमरोंको समझा सकते हैं और स्वयं शब्दश्रुतादिके सहाग्गे पदार्थका यथार्थ स्वरुप जान लेते हैं.
प्रयजनशुदि-गणवदि आनायान पीस दीपोंसे रहित सूत्रोंका निर्माण किया है, उनको दाप सहन पहना व्यंजन शुद्धि है, शब्दाको कोई भी ज्ञान नहीं कहते है अतः शब्दोंकी शुद्धि ज्ञानविनयम कमी अन्नान कर सकोगे एसी का यहां उपस्थित होती है. इसका उत्तर इस मुजर है-शब्दके द्वारा ही हम वस्तुको जान । लेते हैं. ज्ञानोत्पत्ति के लिये शब्द कारण हैं. समस्त श्रुतन्त्रान शब्दके भित्तीपर ही खड़ा हुवा है अतः शब्दोंको 'बायतेऽनेन ' इस विग्रहसे ज्ञान कह सकते हैं.
___ अर्थशद्धि-अर्थशब्दसे हम क्या समझे ? अर्थशब्द व्यजनशब्दफे समीप होनेसे शब्दोंका उच्चार
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