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खुलाराधना
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___ बहाणे अवग्रहविशेषः यावदिदगनुयोगद्वारं समाप्यते ताबदिदं मचा न भोक्तव्यमिदं दानशनादिकं करियागीति संकल्पः । बहुमाणे शुधः छत्तांजलिपुटम्यान्याक्षिप्रचित्तस्य सादरमध्ययनं । अणिण्हवणे अन्यतः श्रुतमधीन्यान्यस्य गुरोः कथन निहननं गुरोरपलापस्तद्विपर्ययः । पंचमो विनयः । बंजणअस्थतदुभये सुद्धी इत्यध्याहार्य । तेन व्यंजनशदिशद्धिः शब्दार्थाभनयुद्धिरित्यमी यो ज्ञानमेदाः। तन्न व्यंजनशुद्धियोक्तसूत्रपठनं । अर्थशुद्धिः सम्यारावार्य निरूभाग : गभगशुद्धियथोक्तं सूत्रं पठतः सम्बनदर्थप्रतिपादनं । वश्चिठि सूत्र विपर्यस्यति तदर्थ तु सभ्याच्या या । अन्बस्नु सूत्रं सम्यगचीयानोऽपि तदर्थमन्यथा कथयति । अपरः पुनः नत्रमर्थ च विघस्थितीति पुरुषवापस नत्रा परिहारण ज्ञानविनयभेदब्रयमुपपातं । अविहो अबमष्टप्रकारो जानाभ्यासपरिकरो ' जमा विणेदि कम्म अमा विणशी गो' इनि त्रचनादष्टविध काग विन्तीति विनया काविप इति मरेरभित्रायः ।
ज्ञानविनयक भद कहते है
अर्थ-काल, विनय, उपधान, बहुमान, अनिव, व्यंजन, अर्थ, नदुःभय वानविनयक बाट मद . कालविनय-यहां कालयब्दन स्वाध्यायकाल यह अर्थ समझना चाहिय. अन्यथा काल शिना कोट भी पाय अपना अस्तित्व सनम असमर्थ है अतः काल शब्दके ग्रहणको यथ्य आवंगा. कारण काल को हमेशा ही रहना है उसका उपस कनिकी कुछ भी जरूरत नहीं थी अतः काल शब्दग म्वाध्यायकालका अथात् कालविश्यका यहां ग्रहण किया है.
शंका-कालशब्दमें विशिष्ट कालका ग्रहण करे तो भी कुछ ह नहीं है, परंतु उसको विनय क्यों कहना चाहिये ? क्योंकि यह अशुभ कर्मको दूर नहीं करता है. यदि वह अशुभ कर्मको दूर करेगा तो सर्व प्राणि मात्र कर्मगहत हो जायेंग.
उत्तर - यहां काल शब्द सप्तम्यंत समझना चाहिये तथा उसके आगे 'अध्ययन' यह शब्द जोड़ देना चाहिये. सर्व सूत्र संक्षेपमें रचे जाते हैं अतः ऊपरसे भी कुछ शब्द जोडने पडते हैं. 'काले। इसका मतलब 'काले अध्ययन ' एसा समझना चाहिये. संध्याकाल, पर्वकाल, दिशादाइ, उल्कापात इत्यादि वर्जनीय कालका परिहार करके अन्य कालमें यदि स्वाध्याय, व्याख्यान, पठन, भजनादिक करनेसे अशुभ कर्म नष्ट होता है.