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________________ गरावना आधामा श्रुतज्ञान में एकाग्रना न होनस और अपूर्व जीवादिपदार्थ का स्वरूप न जाननन सम्यजानकी हानि होती है. 'पुच्चगहिद पि णाणं मंकुडइ विजुनजोगिस्स ' "सम्यग्ज्ञानकी प्राप्ति पूर्व काल में । नुकी हो तो भी अभ्याम छोड देनेसे तथा अपूर्व पदार्थीका ज्ञान कमानेका प्रयत्न न करनेसे वह पूर्व ज्ञान संकृवित होता है ऐसा आगमवचन है. संयमकी भावनासे तपकी वृद्धि होती है. अपनी शक्ति न छिपाना, ज्ञानाभ्यासमें तन्घर रहना, ऐहिक कार्याने अनासक्त रहना यह भी तपोवृद्धिके लिये कारण है. और इसके विरुद्ध प्रवृत्ति करनेसे तपमें हानि होती है. पापक्रियाओं विरक्त होना यह संयम है. मन, वचन और शरीर इन तीन योगोंकी अशुभ प्रवृनीका त्याग करना चारित्र है ' पाप क्रियानित्तिश्चारित्र' ऐया आगण्का गचन है. प्रत्येक अहिंसादिवतोंकी पांच पांच भावनायें हैं. ऐसी पच्चीस भावनाओंके अभ्याससे चारित्रकी उन्नति होती है. भावनाओंका अभ्यास न करनेसे चाग्यि हानिके मार्गका आश्रय करता है. श्रुतका अभ्यास न करनेसे ज्ञानादिकोंके गुण दोपोंका परिक्षान होता नहीं. गुणोंका ज्ञान न होनेसे मुनि उनको उन्नति शिखर पर नहीं ले जा सकते. दोपोंका ज्ञान न होगा तो उनका ये कैसा त्याग कर सकेंगे. अत एव ज्ञानाम्यास आदर करना चाहिये. जिनवचन शिक्षा तपः इत्येतदुग्यते थारसविहम्मि य तवे सभतरबाहिरे कुसलदिहे ।। ण वि अस्थि वि य होहिदि मझायसम यो कम्म ॥ १०७ ।। नास्यभ्यन्तरे याये स्थित द्वादशधा तपः ।' स्वाध्यागन समं नास्ति न भन न भविगान ।।१८।। विजयोदया- चाहम्मि र हादशाप्रकारे । तवे तरसि सयंतरवाहिरसहाय नमान्यां वर्मन ति गाभानग्या हो । यापन यंतर या पो मुक्या किमन्यत्तपो नाम यत्तात्रांसह बनेते इत्युपते: तपःसामान्य विशः सह वर्मतम्यन्यते । सरजारातत्यात अभ्याई लत्याकन अभपतरशम्दस्य पूर्वनिपातोऽल्पस्वरादपि वाहवाध्यात् । कुसददिहे संसारः, संसार कारणं, अधो, बंधकारणं, मोक्षस्त उपायः इत्यष वस्तुनि ये कुशलः सर्वविदस्तै रुपदिष्ट । सायसमें स्वाध्यायेन महश । तपोकम्म तपःक्रिया . वि अस्थि नैवास्ति । ण चिय नैव । होहिदि भविष्यति । नापासीदिति कालत्रयेऽपि स्वाध्याय सदृशस्यान्यस्य तपसोऽभायः कथ्यते । अत्र चोद्यते-स्वाध्यायोऽपि तपो अनशनाधिनपो बुद्धरविशेषान् कमैतपनसा
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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