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________________ यूजाराधना २४८ यानिरुद्धरूपाद्युपयोगो भवति इति । रूपाद्युपयोगनिरोधे किं फलं ? रागाद्यप्रवृत्तिः । मनोज्ञामनोरूपयोगावलेवनी रागद्वेषौ । नानवबुध्यमानो विषयः स्वसत्तामात्रेण तो करोति । सुप्तेऽन्यमनस्के या रागादीनां विषयसभिधायव्यदर्शनात् । " गदिमधिगदस्त देहो देहादो इंदियाणि जायंते ॥ तत्तो बिसयग्गहणं तत्तो रागो व दोसो वा ॥ 19 इति घञनाच्च । कथं स्वाध्याये प्रवर्तमानः । विप्रेण समाहिदो नविनयेन समन्वितो भूत्वा यः स्वाध्यायं करोति । तिगुत्तो य होदि । तिसृभिर्गुप्तिभिर्गुप्तइव भवति । मनसोऽप्रशस्त रागाद्यनवलेपाल्, अन्दतरूक्षपयप्रकर्कशात्मस्त्वनपरदुषणादावव्याप्तेः हिंसादी शरीरेणाप्रवृत्तेश्च समणो य होदि भिक्खू इति पद्मटना – एकमुखांतः करणश्च भवति भिक्षुः स्वाध्याये रनः । एतदुक्तं भवति-ध्याने प्रवृतिमन्यासादयतीति । न कृतश्रुतपरिचयस्य धर्मशुलभ्याने भवितुमर्हतः । अपायपायभवविपाक लोकविना परवाने जिवलादेव 'शुक्ले चाये पूर्वविदः ' इत्यभिहितत्वाच्च ॥ शिनाया अशुभ भाव संवर हेतुत्वं विवृण्वन्नाह - मूलारा -- सज्यायं वाचनादिचविधं स्वाध्याय पंडियो पंचापि इंद्रियाणि संवृतानि यथास्वमिष्टानित्रयेभ्यो व्यावर्ततानि येन । तितो निगृहीताशुभमनोवस्कायव्यापारः एवमणी एकाग्रमनाः ध्यानप्रवृत्तिमानपि स्यादिति भावः । विषएण समाहिदो अप्रविधज्ञानविनयेन संयुक्तः सन्वाध्यायं कुर्वमिति संबंधः । जिनवचनका अध्ययन करनेसे अशुभ भावों का संबर होता है इसका आचार्य वर्णन करते हैं अर्थ - चाचना, प्रश्न, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश ऐसे स्वाध्यायके पांच भेद है. जिसके पदनेसे और पढानेसे पापात्रय न होंगे ऐसे ग्रंथको और उसके अर्थको पढ़ा देना वाचना स्वाध्याय है. प्रश्न- जो आगमका fare मनमें निश्चित किया है उसमें विशेष दृढताके लिये अथवा संशय दूर करनेके लिये सूत्रार्थविषयक प्रश्न आगमज्ञको पूंछना. अनुप्रेक्षा-जो विषय जान लिया है उसका मनमें चिंतन करना. आम्नाय पढा हुत्रा विषय बार बार बोकना. धर्मोपदेश- आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी, और निर्वेजनी ऐसी चार धर्मकथायें है. उनका भष्योंको उपदेश देना, यह पांच तरहका स्वाध्याय करनेसे पांच इन्द्रियों संयम युक्त होती हैं. अर्थात रूपादि विषयों प्रति ये दौडती नहीं. इन्द्रियसंयमसे नये रागद्वेष आत्मामें उत्पन्न नहीं होते हैं. इष्ट रूपादि वस्तुओंके तरफ जब इंद्रियां प्रश आश्वासः २ २३८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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