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________________ मृलाराधना - आश्वासः मूलारा-रजसेदाणमगणं रजःस्वेदयोरग्राहकं अचित्तरजोपाहितिलखनेन सरिसरजो विराध्यते तमाहिया वा अचित्तं रजः ! स्पेदनाहिगा तु रजसामुपतिः स्यात् । मघ माईर्ष मृदुस्पर्शता । सुकुमाया नमन शीलता | लहुत्त लघुत्यमभारिफत्वं । नार्दवादिविपर्ययरता प्रतिलेखनन जीवानामुपयात एव कुतो दयेति भावः । अग्रे चतुर्षिधलिंगसंमहकारिका मुमुक्षुणा भाषनीया । नम्नो मुंशो ऽस्तसंस्कार: प्राणिरक्षाध्य दधत् । सराग यदि चेष्ट्रय हास्येवाह मम मिः ।। लिंगं ।। सवतः ।। २ ।। अंकतः २२॥ प्रतिलखमांक-पिछिकाके लक्षणोंका वर्णन करते हैं. अर्थ-सनित्त और अचिच ऐसे पलीके दो प्रकार है. जो पिलिका इन दोनो प्रकारके लिओका ग्रहण नहीं करनी है यह रजोवाहक नामक गुण से युक्त है ऐसा समजमा चाहिंय. पिभिलका यदि मचिन लीको ग्रहण करने वाली होगी तो उसने अचित्त बलीकी विसाधना दोगा और अनिन नीकी एदि गला भी हो. सचिन चलीका विगधन होगा, अतः लिमात्रका ग्रहण न करना यह पहिला गण है. स्वेदको ग्रहण न करना यह उमका दसरा गुण है. स्त्रेदके ग्ररण करनेये रजकी-धूलिकी विराधना होगी. इसलिये म्बेदको घामके-जलको ग्रहण न करना यह उमका दुमा गुण है. मादेव नामक तीमरा गुण है. अर्थान पिनिकाका म्पर्श मुद होना चाहिये. मृदु मार्श न होगा तो उसने प्रमादि जन्तु जब हटाये जानोगे नौ उनको कट होंगे कदाचित् मर भी जावेंगे. सुकुमालता यह चौथा गुण है, अर्थात् वह नमनशील होनी चाहिये. यदि न नमगी कढी होगी तो उससे भी जीव विराधना होगी, तथा वह लघुतागुणयुक्त होनी चाहिये. अर्थात् वह हलकी होनी चाहिये. भारयुक्त न हो ऐसे पांच गुण जिस पिचिलका हो वह दयाके प्रकारोंके जाननेवालोंसे प्रशंसी जाती है. जिसने लिंग धारण किया है ऐसे मुनीक लिंगके चार गुणाझा वर्णन किया. २३७ शिक्षानंतरेति तनिटपणा उत्तरप्रधः । जिणवण जिनयंचने । महों य रत्ती य नक्तं दिय । पढिवयं मध्ये तव्यं । कीरग्भूतं जिममधचनमत यौह
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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