________________
मुलाराधना
माथा
२३२
सुंदरता ववे इसलिये हाथ और पाय, बगैरे धोना, औषधादि विलपन करना यह हस्तपादादिसंस्कार है, ऐसे सव देहसंस्कारोंका मुनि त्याग करते हैं. इससे वे शरीरके ऊपर स्नेह रहित है यह सिद्ध होता है. शरीर स्नेह छोडना यह भी मुनिलिंगका एक भेद है.
बजेदि बभचारी गंध मलं च धूबवासं बा ॥ संवाहणपरिमहणपिणिदणादीणि य विमुत्ती ॥ १४ ॥ न स्कन्धकुहनं वासं माल्यं धूपविलेपनम् ॥
कराभ्यां पलनं दी चरणाभ्यां च मर्दनम् ।। १५ ।। विजयोदया-धं कम्तरिकादियः । म मान्य च तृप्तकार । अपवासं च : धर्ष कारागादिकापस नाव: च जातिफलादिक । अनेकस चिदन्यगिध वा. संचास्ना मरनं । चरणायमदन पग्नि' परियार उन्नति दाका च क य प गडमिन्ययन म तिमनि प्रयोजनाभरामाननुनी । :::10 निवृनिपगे यतिः ।
कहनं । पाणधणादण असंयोन्नति दी का पान-न्युच्यने । पुटपुटीयन्य । आका। चुहुदहिकादिमईनम् । विहा विमुक्ताः यि ययः । = हे अश्चारिणां स्नानादिना प्रयोजन्नस्ति पर कायस्य शोधयितुमशक्यत्वात् नान्यलाचाभ्यां च बासन्मभ्यामपायरामनीयकत्वात् । न भूभ्यादिम्थन सम्यार हिंसारागादिप्रसंगाश्च ।
अर्थ--ब्रह्मचर्य धारकने कस्तूरी बगैरे मुंगध वस्तुओंका त्याग करना चाहिये. पुष्पमाला, रत्नमाला मुक्तमाला, सुवर्णमाला इनका त्याग करना चाहिये. कालागरु, तगर बगरहका धूप भी त्यागना चाहिये. मुम्बको सुगंधित करनेवाले जायफल, इलायची, लवंगादि पदार्थ छोडने चाहिये. हाथोंसे अंग चूरना, पाओंसे अंग रगडना, पुष्ट दृढ करने के लिये बाहमर्दन करना इत्यादि कार्य मधुनसेवाके त्यागी मुनिवर्य छोड देते हैं.