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________________ आश्वासः २१५ SARKI Rew माधव नाला देशकर उन सब जगत्का श्रद्धान होता है ऐसा जगत्प्रत्यय इस शब्दका अभिप्राय समझ लेना चाहिये. शंका-श्रद्धा प्राणिओंका धर्म-स्वभाव है और अचेलतादिक शरीरका धर्म है अतः लिंगका जगत्प्रत्यय यह विशपण कैसा उपयुक्त है ? उत्तर-संपूर्ण परिप्रहका त्याग ही मुक्तिका माग है ऐसी नग्नता देखकर श्रद्धा उत्पन्न होती है अतः लिंगका यह विशेषण सार्थक है संपूर्ण परिग्रहत्यागही मुक्तिका लिंग यदि नहीं होता तो नियोगसे क्यों उसकी आराधना की जाती है। नग्नतामें ' आदठिदिकरणं' इस नामका एक गुण है. स्वतःमें अस्थिरपनाको निकालकर स्थिरपना उत्पन्न करना यह आदिठिदिकरण इस शब्दका अर्थ है. मुक्तिमार्गमें प्रयाण करनेमें स्थिर होना ऐसा इसका अभिप्राय है, इसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-मुनि विचार करते हैं- मैने वस्त्रका त्याग किया है अतः अब राग, द्वेप, अभिमान, माया और लोभ इनसे मेरा क्या प्रयोजन है ? वस्त्रकी इच्छा ही अलंकारदिकी इच्छाको उत्पन्न करती है, अर्थात वस्त्र यदि पास होवे तो अलंकारादिक भी मेरेको मिलेंगे तो अच्छा ही होगा ऐसी इच्छा होती है. मैने रख ही फेक दिया है अब रागभावनासे मेरा क्या प्रयोजन है ऐसा विचार करते हैं, तथा परिग्रह कोपोत्पत्तिका कारण है. धनकी आवश्यकता पड़ने पर पुत्र भी अपने पितासे लड़ता है. यह धन मेरा है यह धन तेरा है इस तीसे झगडा करता है. अतः स्वजनोंमें पैर उत्पन्न करने वाले धनको लेकर मैं क्या करूं? यह परिग्रह लोभ, आयास, पाप व दुगतिको उत्पन्न करते हैं. इसी वास्ते मैरे यसपमुख समस्त परिग्रहको कोपको जीतनेके लिये छोट दिया है. में यदि रोपवा हो तो मेरेको इतर साधु हसेंग. ये कहेंगे देखो इनकी नग्नता और देखो इनका कोपग्नि! यह कोपाग्नि ज्ञानजलसे सींचा और वृद्धिंगत हुषा ऐने तपरूपी बनका नाश करनेके लिये तयार हुआ हैं । धनवान लोक हमेशा कपट व्यवहार करते हैं, वह उनको तियेग्गतीमें पटकता है. अतः ऐसे घर कपटसे दरकर इसका नाश करनेके लिये ही मैने यह मुनिपना धारण किया है. ऐसा विचार मुनि मनमें करते हैं. अतः नग्नता आत्मस्थितिकारण गुणको उत्पन्न करती है ऐसा कहना योग्य है. इस नग्नता से मुनि गृहस्थोंसे भिन्न है ऐसा भी व्यक्त होता है, . . . . -------- U
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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