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________________ मूलाराधन! १९६ सल्लेहणा दिसा खामणा य अणुसिहि परगणे चरिया || मग्गण उपाय पडलाय पाडलेहा ॥ ६८ ॥ विजयोदयमा सम्यकतमकरणं । दिया परलोकादिगुपदर्शनपरः सूरिणा स्थापितः भवतां दिशं मोक्षवर्तम्याश्रयमुपदिशति यः सुसिदिशा इत्यस्यनावणाश्रमाग्रहणं । असिहि सूत्रानुस शासनम अन्य चरिया प्रवृत्तिः । मध्यणमात्मनो विशुद्धि समाभिर वा संपादयितुं अमस्य मूंग सुहिंदी सुस्थितः पुरोपक स्वयोजन च सम्यक स्थिनः सुस्थितः आचार्यः । उपसंपया आचार्यस्य दोन पि परीक्षा गणस्य परिचारकस्य, आराधकस्य, उत्साहशक्य आहारगतामिलाएं यनुमयं क्षमो नेति । पाउलेडा आराधनाथा व्याक्षेपेण विना सिद्धिर्भवति न वा राज्यस्य देशस्य ग्रामनगरादेस्तत्र प्रधानस्य वा शोभनं वा नेति एवं निरूपणम् । मूलारा-सहा सम्यक्ऋशीकरण अर्थात्कायकपायाणाम दिसा एठाचार्य : संघाधिपतिना या जीवमा चार्ययागेन स्वपदे प्रतिष्टितः स्वगभानगुणग्रामः शिष्य इत्यर्थः । खामणा परम्परक्षमापणा अणुमिति स्त्रानुसारेण शिक्षादानं । परगणे चरिया अन्यस्मिन्सचे गमनं । मन्गण आत्मनो रत्नत्रयशुद्धि, समाधिमरणं व संपादयितुं क्षमस्य सूरेरन्वेषणं । सुदि परोपकारकरणे स्वप्रयोजने च सम्यक् स्थितः सुस्थितः आचार्यः । उवसंपा आचार्यस्य आत्मसमर्पणं । पढिच्छा परीक्षा नरकस्य मनोज्ञाहारलाल्यगोचरा । पडिहा आराधनानिर्वित्र सिद्धयर्थं देवतोपदेशाष्टांगनिमित्तादिगवेपणं । हिंदी अर्थ -- सछेहणा, दिशा, क्षामणा, अनुशिष्टि, परगणचर्या, मार्गणा, सुस्थित, उपसंपदा, परीक्षा, प्रतिलेखन ऐसे दस सूत्रोंका विवरण इस तरह समझना चाहिये. सल्लेखना -- शरीर और कषायोंको कृश करना. दिशा - आचार्यने अपने स्थानपर स्थापित किया हुवा शिष्य जो परलोकका उपदेश करके मोक्षमार्गमें भव्योंको स्थिर करता है, संघाधिपति आचार्यने यावजीव आचार्य पदवीका त्याग करके अपने पदपर स्थापा हुवा और आचार्यके समान जिसका गुणसमुदाय हैं ऐसा जो उनका शिष्य उनको दिशा अर्थात बाळाचार्य कहते हैं. खामणा अन्योन्य क्षमाकी याचना अविरुद्ध उपदेश करना. करना. अनुशिष्टि आगमके परगणचर्या - अपना संघ छोड़करके अन्यसंघमें गमन करना मम्गण - रत्नत्रयकी विशुद्धि करनेमें समर्थ अथवा समाधिमरण करने में समर्थ ऐसे आचार्यका शोध करना. यह मार्गणा सूत्र है. सुडिद- परोपकार करने में तथा स्वकीय आचार्य पदवीके लायक कार्य करनेमें प्रवीण गुरुको सुस्थित कहते हैं. आध १९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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