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लारापना
आवासः
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अरिह-अई- सविचारभक्तप्रत्यारयान के लिये कोन योग्य होता है इसका वर्णन अर्ह सूत्रसे किया जाता है. यह प्रथमाधिकार है. लिंग, शिक्षा, विनय, समाधि वगैरहको धारण करने लायक जो व्यक्ति है उसको अहं कहते हैं. योग्यता हो तो लिंग, शिक्षा, बिनयादि गुण रह सकते हैं. अन्यथा नहीं,
लिंग-शिक्षा, विनय, समाधि वगैरह क्रिया भक्तप्रत्याख्यान की साधनसामग्री हैं, उस मामग्रीका यह लिंग योन्य परिकर है यह मूत्रित करने के लिये अहंके अननर लिंगका विवचन किया है. पर्व परिकरसामग्री जुटनेपर जसे कुंभकार घटनिर्माण करता है वैसे अई-योग्य व्यक्ति भी साधनसामग्रीसे युक्त होकर महावनादि कार्य करनेके लिये मन्त्रद्ध होता है. लिंग शब्द चिन्हका वाचक है.
शिक्षा-ज्ञानोपार्जन करना. विना ज्ञानके विनयादिक कार्य करना शक्य नहीं है. अतः विनयादिकका वर्णन करनेके पूर्व शिक्षाधिकारका वर्णन करते हैं.
शास्त्राध्ययन करना यह शिक्षा शब्द का अर्थ है. जिनेश्वरका शास्त्र पाप हरण करने में निपुण है अतः उसको दिनगन पहना चाहिये ऐसा ग्रंथकार आगे स्वयं कहेंगे.
विनय-मर्यादा, ज्ञानादिभावनाकी व्यवस्था ज्ञानादिका बिनय करनेसे होती है ऐमा आग कहेंगे.
समाधि -- मनको एकाग्र करना. सम शब्द का अर्थ एकरूप करना ऐसा है. जैसे धत मंगत हुवा है. तेल संगत हुवा है अर्थात एकरूप हुवा है. मनको शुभोपयोगमें अथवा शुद्धोषयोगमें एकाग्र करना यह नमाधि शब्दका अर्थ समझना.
आणियदविहार- अनियत ग्राम, पुरादिक स्थानों में रहना,
परिणाम-'सद्भावः परिणामः' ऐसा पूर्वाचार्यका वचन है अर्थात जीवादिकपदार्थ क्रोधादिक विकारोंसे अथवा सम्यग्दर्शनादिक पर्यायोंसे परिणत होना यह परिणाम शब्दका सामान्यार्थ है. तथापि यहां यातको अपने कर्तव्यका हमेशा ख्याल रहना परिणाम शब्दका प्रकरण संगत अर्थ समझना चाहिये.
उपधिजहणा-परिग्रहका त्याग करना,
सिदी--शिति अर्थात् शुभपरिणामसे उत्तरोतर परिणामांकी उन्ननि होना. उत्तरोत्तर उन्कट भावनाको अभ्यास करना इसको भावना कहते हैं.