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________________ लाराधना आवासः मरणभेदेषु प्रायोपगमनमरणादिषु त्रिपु व्याख्यातेपु मध्ये । कुत एतदित्याह-उस्सष्यमित्यादि । यस्मादेतस्मिन्काले अत्र लेने जातानां साधूनां । उस्सणं मरणं । सा घेष सैव भक्तप्रतिज्ञैव संभवति । प्रायोपगमनादिसाधनोचितसंहननविशेषाभावात् । सर्वत्र सूत्रातिरिक्तानि पदानि साध्याहारत्वात्सूत्राणामिति मंतव्यानि ॥ ननु यद्ययेह साधना भक्त प्रत्याख्यानमेव स्यात्तीतरे किं न वर्षे इत्यत्राह । सेसाणं शेषयोः प्रायोपगमनस्येन्निनीमरणस्य च । वाणा व्याख्यान । पच्छा पश्चारकर्तव्या भवतीति संबंधः ।। नन्वते यद्यद्य साधूनामसाध्ये तल्किमेतयोरञोपदेशेनेति चेनमस्तस्वरूपोपदेशासत्र सम्यग्ज्ञानं स्यासच मुमुक्षणानुपयोग्यवेति ।। मरणोंके सत्रह प्रकार हैं उसमेंसे पांच मरणोंका यहां हम वर्णन करेंगे ऐसी आचार्यने प्रतिज्ञा की है, पांच मरणोमेंसे जो पंडितमरण नामका भेद है उसके प्रायोपगमनमरण, इंगिनीमरण, भक्तप्रत्याख्यानमरण ऐसे तीन भेद है. इनमें भक्त प्रत्याख्यानमरणका वर्णन प्रथमतः आचार्य करते हैं. आगे जो विषय प्रतिपादन किया जायेगा उसका संबंध यहां दिखाते हैं--- हिंदी अर्थ-प्रशस्त मरणोमेंसे प्रथमतः आचार्य भक्तप्रत्याख्यान नामक मरणका वर्णन करेंगे यह मरणही इस कालमें अतिशय उपयुक्त है. यहां प्रशस्त मरणोंका समुदाय अवययी है और भक्तपत्याख्यानादिभेद अवयव है. जहा निर्धारण होता है अर्थात अनेक वस्तुओमेंसे एकाद वस्तुको अलग करके दिखाना पड़ता है उसको निर्धारण कहते हैं. जैसे- गाईओमेसे काली गाय बहुत दूध देती है, यहां अनेक गाईयोमेंसें काली गायका प्रथककरण किया है. उसी तरह प्रशस्तमरणके भेदोमेंसे भक्तप्रत्याख्यान मरणका पृथकरण किया है. क्योंकि वह ही इस कालमें अत्युपयुक्त है. वर्षभनाराच संहनन, बचनाराच वगैरह उत्तम संहननके धारक जीयोंको इंगिनीमरण प्रायोपगमनमरण ऐसे मरण उपयुक्त माने गये हैं. इस पंचम कालमें वज्रर्पभनाराचादि उत्तम संहननके धारक जीव यहां भरतक्षेत्र में उत्पन्न नहीं होते हैं. अतः भक्तप्रत्याख्यान मरणकाही प्रथम विस्तृत वर्णन आचार्य यहां करेंगे. अनंतर इंगिनी वगैरे दो मरणोंका वर्णन करेंगे. यदि इंगिन्यादि दो मरणों के लिये इस काल में शरीरही योग्य नहीं है तो उन मरणोंका वर्णन करना निष्प्रयोजन है। इस प्रश्नका उत्तर यह है कि उनके स्वरूपोंका ज्ञान होनेसे सम्यग्ज्ञान होता है, और वह समक्ष लोकोंको उपयोगी है. ... ... ... ... । -
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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