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________________ मूलाराधना आवासः १८८ शीलं प्रतपरिरक्षणं । बदं ।ईसादिभ्योऽभिप्रायकता विरतिः । गुणो सामादिः । कहत्यादि । कह कथं । अनंतानंतसंसारमप्यात्मानं करोतीति भावः । बत, शील और तपश्चरण धारण करता हुवा भी यह जीय यदे मिथ्याष्टि हो तो मिथ्यात्वदोषसे चिरकाल तक संसारमें भ्रमण करता है. यदि यह वतादिकोंसे भी रहित हो तो अवश्य संसारमें भ्रमण करेगा ही भी अभियपूफार गम्मा कहते है। अर्थ--जो मिध्याइष्टि शील, यत और गुणोंसे रहित है वह मरणके अनंतर दीर्ष संसारी क्यों न होगा! अवश्य होगा. एक पि अक्सरं जो अरोचमाणो मरेज जिणदिळें ॥ सो वि कुजोणिणिवुडो किं पुण सव्यं अरोचन्तो ।। ६२ ।। अरोचित्वाजिनाख्यातं एकमप्यक्षरं मृतः ।। निमजाति भवाम्भाधी सर्वस्यारोचको न किम् ।। ६६ ॥ विजयोदया--पक्रमपीत्यस्य बालवालमरणप्रवृत्तस्य भव्यस्य संख्याता, असंख्याता, अनंता वा भवन्ति भवाः । अभस्यस्य तु अनंतानंताः । मिश्यादर्शनदोषमाहात्म्यसूचन संसारमहत्ताख्यापनेन फियतेऽनया गाथा ।। जिनदृष्टस्यैकस्याप्यभरस्याश्रद्धाने कुयोनियूत्पत्तिः स्वात्किं पुन: समस्तस्यापि झुतस्यत्यामूलारा-कुजोणिणि चुड़ो कुत्सितयोनिनिमग्नो भवति । अर्थ-जिनेश्वरने उपदेशा हुवा एक अक्षरपर भी जो मनुष्य श्रद्धान नहीं करेगा बह भी कुयोनियोम चिरकाल भ्रमण करेगा. तो जो संपूर्ण जिनवचनोंको अमान्य समझता है उसको तो संसारमें अनंतकाल तक भ्रमण करना पडेगा ही यह अलग कहनेकी आवश्यकता नहीं है. अल्प भी मिथ्यात्वरूप विपकणिकाका सेवन करनेसे जीवको कुयोनी में भ्रमण करना पडता है. जिनमगवानने कहा हुआ समस्त जीवादिक पदायाँका उपदेश जो जीव अप्रमाण समझकर अश्रद्धान करता है उसके लिये तो कहना ही क्या रहा ? ऐसा इस गाथाका भाव है. १८८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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