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________________ मूलाधना आचामः दक्षिणमथुराता पारलिपुत्रं प्राप्तमिच्दुः दक्षिणां दिशं गन्ममिति । गिब्बुदि निवृति । अग्रा अयां । अथवा निर्वृतिस्तुष्टि एंथा मनसो निर्बुतिर्मनस्तुष्टिरित्यर्थः । निर्वृतेर्मार्गमुपाये क्षायिकमानचारित्राख्यम् । स्पष्टतया न प्रतिपदव्यारहया कृता । __ मूलारा-धाण अत्यर्थं । पि संजमतो संगर्म कुर्वन्नपि । दुई णिव्युदिन भायिकरत्नत्रयाख्यं मुक्तिमार्ग । अथवा प्रष्ट बांछिता निर्धतिं तुधि । अग्न्यां प्रधानभूतां । अनंतमुखमित्यर्थः । अर्थ-मिथ्यादृष्टि मनुष्य चारित्रका पालन अच्छी तरहसे करेगा और उग्रतप भी तपेगा तो भी उसको इच्छित मोक्षमागकी प्राप्ति कभी भी नहीं होगी. जैसे कोई आदमी पाटलिपुत्र नगरको जानेकी इच्छा रखता हुआ दक्षिणमथुरासे दक्षिणदिशाके तरफ ही चलने लगा अब बोलो वह कभी पाटलिपुत्र शहरको पोहोंच सकता है। उसी तरह यह मिथ्यारष्टिजीव भी मोक्षमागमें न होनेसे स्वेष्टस्थान-मोक्षको प्राप्त नहीं कर सकता. मोक्षका मार्ग क्षायिकज्ञान, यथारख्यात चारित्र ये है, मिथ्याष्टिको इनकी प्राप्ति नहीं होती है ऐसा इस गाथाका अभिपाय है. शा व्रतेन शीलेन तपसा या युक्तोऽपि मिथ्यात्पदोषाश्चिरं संसारे परिभ्रमति इतरस्मिन्त्रताविहीने किं । वाच्यमिति दर्शयति-- जस्स पुण मिच्छदिहिस्स णस्थि सील बदं गुणो चावि ।। सो मरणे अप्पाणं कह ण कुणइ दाहसंसारं ॥ ६१ ॥ न विद्यते व्रतं शीलं यस्य मिथ्याशः पुनः॥ न कध दीर्घसंसारमात्मानं विदधाति सः ॥ १५ ॥ विजयोदया--स्वम्पापि मिथ्यात्यविस्कणिका सुत्सितासु योनिषु उत्पादयति कमाति वाच्यं सर्वस्य जिनदृष्टस्या भ्रद्धाने । इति गाथा या अर्थः ।। भगवन्यधनं अत्तादियुक्तोऽपि मिभ्या दृष्टिर्थि संसारे भ्राम्यति तईि मरणे व्रतादिरहितोऽसौ की रक्फळभाजनमात्मानं कुर्यादित्यत्राह १८७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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