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________________ आश्वासः अंका-इस जवन्यसम्यक्त्वाराधनाका काल पूर्व में संबज्जा संखज्जा वा सेसा जहण्यााए ' इस माथाधर्म कहा है. वही अभिप्राय प्रस्तुत गाथामें पुनः आप कहने हैं इस लिये यहां पुनरुक्ति दोष आता है. समाधान आपका कहना ठीक है, कहे गये अथकोही बार बार कहना वह पुनरुक्तिदोप है. परंतु यहाँ सम्यक्त्वाराधनाकी विशंपता कही है इस लिये पुनरुक्ति दोष नहीं है. सम्यक्त्वाराधक दुःखोंका श्रग करके मुक्त हो जाता है यह विशपता इस गाथामें आचार्यने दिखायी है अतः यहां पुनरुक्ति नहीं है. सम्यक्षलाभमाहात्म्यनियेषनाय गाथा लसूण य सम्मत्तं मुहुत्तकालमवि जे परिवडंति ॥ तेसिमर्णताणताण भवदि संसारवासद्धा ॥ ५३ ॥ मुहूर्तमपि पे लब्ध्वा जीवा मुंचन्ति वर्शनम् ॥ नानंतानंतसंख्याता तेषामद्धा भवस्थितिः ।।५७ ॥ इलि शासमरणं समाप्तम् ॥ विजयोदया-लण लब्ध्या । सम्मत्तं तत्वश्रद्धानं । क्रियत्काले ! मुटुत्तकालमयि अंतर्मुहर्तमानमपि ।। जे ये परिवर्डति सम्यक्त्यात्प्रच्ययान्ति । अनंतानुबंधिनामुदयात् । नास तेषां सम्यक्त्वान्युज्य मिथ्यात्यं गनानां मसारवासमा ससारयसनकालोऽनंनो भवत्यति, तुशन एवकारार्थोऽथ संबंधन नेयः । अनंताननप्रहां कुर्वता अनंतकालपरिभ्रमण सद्भावसूचनं कृतम् ॥ इति वालमग्नम ।। भूला-दु एवार्थ । मुटुत्तकालं अन्तर्नुमा बिहान । साय+बाच्या अनानुबंधिनामन्यनमोदयान । अन्नानी' । अनंतस्तु म्यादिति भावः । अजा का भालारणं प्रकरणात । सम्यकबके लाभका माहात्म्य करते हैं, अर्थ---जो जीव सम्यग्दर्शनको मुहर्तकालपर्यंतभी प्राप्त करके अनंतर छोड देते है वे भी हम संसारमें अनंतानन कालपर्यत नहीं रहते हैं. अर्थात् उनको अईपुदलपरिवर्तन कालतकही फिरना पडता है. इससे जादा कालतक वे भवभ्रमण करते नहीं, वालमरण प्रकरण समाप्त हुवा, अच बालनाल प्रकरणका वर्णन करते है. १७८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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