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मृलाराधना
आश्वासः
भ्यो येऽन्येऽसंयतसम्यग्दृष्टयादयस्ते परिगृह्यन्ते शेषाने
सत्रापचादमाह-असिरदसम्मादिहिस्स असंयतसम्यग्रष्टः । जहण्णा जघन्या सम्यक्त्वाराधना भवति । कि सर्वस्य ? नेत्याव-संक्रिलिठुस्स लक्लिष्टस्य परीषदष्याकुलचेतसः इति यावत् ।।
का सम्यक्त्याराथना कस्य स्यादित्याह
मूलारा-उक्कस्स उत्कृष्टा प्रशस्नेतररागारकर्ममलविलयानिखिलवस्तुयाथात्म्यपाहिसकलमानसह चरितत्वाक । - अर्थादयोगकेवलिनस्तस्यैव मरणसभरात्परमोत्कृष्टशुधरेयासंस्कारव्यवहरणानुसरणाच्च । पूर्वप्रयोगादाविद्धकुला लचकददिति सूचकारवचनात् । सेसा असंक्लिष्टसम्यग्दृष्ट्यादिः । गंकिलिठुस्स परीपझ्याकुलमनसः । • कहीं हुई ये तीन आराधनायें किस जीवको प्राप्त होती है ? इस प्रश्नका उत्तर आचार्य देते हैं,
अर्थ--उत्कृष्ट सम्यक्त्वकी आराधना अयोगकेवलीको होती है. मध्यम सम्यग्दर्शनाराधना बाकीके सम्यग्दृष्टी जीवोंको होती है, परंतु परीपहोंसे जिसका मन उद्विग्न हुवा है ऐसे अविरत सम्यग्दृष्टीको जघन्य सम्यक्त्वाराधना प्राप्त होती है,
विशेशर्थ-असहाय ज्ञानको कंबलज्ञान कहते हैं. शंका-इंद्रिया, मन, प्रकाश और उपदेशादिकाका सहारा न लेकर फक्त आत्माके आश्रयसे अवधि व मनापर्यय ज्ञान उत्पन्न होते हैं. इस लिये उनको भी केवलज्ञान क्यों नहीं करते हो ? उत्तर अवघ्यादिक ज्ञानको केवलज्ञान नहीं कहते हैं. जिसने सर्व ज्ञानावश्याकमका नाश किया है ऐसे ज्ञानको ही केवलज्ञान यह शब्द रूढ है अन्य ज्ञानोंमें केवल शब्दकी रूदी नहीं है.
केबलि शब्द सामान्यसे सयोगकेवली और अयोगकंबली इन दोनों में प्रवृत्त है तो भी यहाँ कयली शब्दसे अयोग केवलीकाही ग्रहण होता है. सयोगकवलीकी अवस्थामें मरण होताही नहीं,
केवलीका सम्यग्दर्शन उत्कृष्ट कैसा ? उत्तर--सम्यग्दर्शनके सराग सम्यग्दर्शन और धीतराग सम्यग्दर्शन ऐसे दो भेद हैं. रागके भी प्रशस्त राग और अप्रशस्त राग ऐसे दो भेद है. पंच परमेष्टी, और जिनागममें जो गुणानुराग उत्पन्न होता है उसको प्रशस्तराग कहते हैं. अनशस्तरागसे मनोहरविषयोंमें जो प्रेम उत्पन्न होता है वह पहिला अप्रशस्त राग है. और वुद्ध, कपिलादिक. आप्ताभास और उनके सिद्धान्त, उनके द्वारा प्ररूपे हुए कुमाग तथा कुमार्गस्थ लोक इनके विषय में हुआ जो अनुराग बह दसरा अप्रशस्त राग है, प्रशस्तरागसहित जीवांका जो