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________________ मृलाराधना आसान: पढ जाती है. और दर्शनविनयकी प्राप्ति होती है, सम्यक्त्वकी आराधना करनेवाला कोई जीव यद्यपि असंयत सम्यग्दृष्टि होगा तथापि वह विशुद्ध और तीय लेश्या धारक होनेसे अल्पसारी होता है. कोधादि कपायोग अनुरंजित योगकी प्रवृत्तिको लेश्या कहत हैं. उसके कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, और शुक्ल ऐप्त छह भेद हैं. कृष्ण, नील और कापोत ये तीन लेश्यायें अशुभ है. यहां उत्तर तीन लेश्याओंका ग्रहण समझना चाहिये, जिसके तीन शुभ लेश्याके तीत्र निर्मल परिणाम है वह सम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्दर्शनकी आराधनासे चतुर्गतिम थोडा भ्रमरर करने युक्त होता है. मत्पसार रह जान यह सभ्यदर्शनाराधनाका फल है ऐसा यहां समझना चाहिये. सहहया एसियया रोचय फासंतया पवयणस्स ।। सयलस्स जेण पदे समत्ताराया होति । रोचका जंतवों भक्त्या स्पर्शकाः प्रतिपादकाः॥ आगमस्य समस्तस्य सम्यक्त्वाराधका मताः ॥ ५२ ॥ संवादार्थ व्याख्यातृभिः सूत्रे पठिता पाथा यथा सदहया पच्चियया रोचय फासतया पबयणस्स ॥ सयलरस जे गरा ते सम्मचाराया होति । मूलारा-सहहया श्रद्धानकारकाः मनसा। पत्तियया प्रीतिमतः इदमेवोत्तममिति वचनेन । रोचय रुचियुक्ताः नखरूद्रोटिकया। फासंतया अनुष्ठातारः अर्थ-जो जीव जीवादितचोंके प्रतिपादक आगमपर मनसे श्रद्धान करते है. जो जिनकथित तय ही सर्वोत्कृष्ट है ऐसा वचनके द्वारा उच्चार करके श्रद्धान करते हैं, अर्थात् अन्तःकरणमें उत्पन्न हुवा अद्वानपरि णाम वचन के द्वारा व्यक्त करते हैं. जो चुटकीके द्वारा अर्थात् करतलवनिके द्वारा अपना तत्चश्रद्धान प्रगट करते है, तथा जो अपना तत्वश्रद्धान कार्य करके-धर्मप्रभावना-जिनपूजा, दान इत्यादिके द्वारा प्रगट करते हैं. ये सब जीव सम्यग्दर्शनके आराधक हैं ऐसा मानना चाहिये. १७३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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