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________________ मूलाराधना अर्थ-मैं शिवकोटि आचार्य) छप्रस्थ होनेसे मेरे द्वारा जो प्रवचनका वर्णन किया गया है वह यदि विरुद्ध होगा तो जिन्होने आगमके अर्थका सम्यक निर्णय किया है वे साधार्मिक प्रेमसे उस अर्थका संशोधन करें. आश्वास १८५३ आराधणा भगवदी एवं भत्तीए वणिदा संती॥ संघस्स सिवजस्स य समाधिवरमुत्तमं देउ ॥ २१६८।। आराधना भगवती कथिता स्वशक्त्या चितामणिर्वितरितुं बुधर्चितितानि ।। अहाय जन्मजलधि तरितुं तरण्ई भव्यात्मना गुणवती ददतां समाधि ।।२२३८।। करोति वशवर्तिनीस्त्रिदशजिताः संपदो । निवेशयति शाश्वते यतिमते पदे पावने ।। अनेकभवसंचितं हरति कल्मषं जन्मिनाम् ।। विदग्धमुखमंडनी सपदि सेचिताराधना ।। २२३५ ।। चिजयोदया-आराधणा भगवदी आराधना भगवती एवं भक्त्या कीर्तिता सर्वगुप्तगणिनः संघस्य शिवाचार्यस्य च विपुलां सफलजनमाथनीयां अव्ययाधमुखां सिदि प्रयच्छतु । शास्त्रकदेवं भक्त्या परमाराधना न्यावर्य स्वल्यावर्णनफलं प्रार्थयतेमूलारा-समाहिवरं शुक्र यानं । उत्तम व्युपरतक्रियानिवर्तिनामधेयमिति भत्रम् ॥ · अर्थ-इस प्रकारसे भक्तिवश होकर वर्णन की गई यह भगवती पूज्य आराधना सर्व संघको और शिवकोटि आचार्यको सर्व जीव जिसकी अभिलाषा करते हैं, जो अव्याबाध सुख देती है ऐसी अनन्त मुक्तिको प्रदान करे. असुरसुरमणुयकिण्णररविससिकिंपुरिसमहियवरचरणो ॥ दिसउ मम बोहिलाहं जिणवरवीरो तिहुवर्णिदो ॥ २१६९ ॥ १८५३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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