SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1838
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मलाराधना आश्वास अर्थ-मनुप्यायुके साथ ऊपरके दस प्रकारके कोका अयोगि मुनि अनुभवन करते हैं. जो तीर्थकर है उनको तीर्थकरकमके साथ ऊपरके ग्यारह प्रकृति का उदय होता है और मुंडवलीको ग्यारह प्रकृतिओंका उदय होता है। १८२७ देहतियबंधपरिमोक्खत्थे केवली अजोगी सो ॥ उवयादि समुच्छिण्णकिरियं तु झाणं अपडियादी ॥ २१२३ ॥ दहेत्रितयधस्य ध्वंसायायोगकेवा ।। समुच्छिन्नक्रियं ध्याने निश्वलं प्रतिपयते । २१९७ ।। विजयोदया-दसिय देवत्रिकबंधपरिमोक्षार्थ समुच्छिन्नक्रियानिवृत्तिभ्यानं ध्याति ॥ तत्कालकरणीयमशरीरत्वकार परमतरशुक्लध्यानमभिधन्ते भूलारा-देहतिय परमौदारिक, तेजस, कार्मणं चेति त्रीणि शरीराणि । अपष्टिवादी य समुच्छिन्नक्रियाप्रतिपाति । व्युपरतिक्रिया निवर्तीत्यपराख्यम् ।। अर्थ-औदारिकशरीर, तेजस व कार्मणशरीर इन नि शरीरोंका बन्धनाश करनेके लिये घे अयोगकेवली भगवान् समुच्छिभक्रिया निवृत्त नामक चतुर्थ शुक्लध्यानको ध्याते हैं. BB सो तेण पंचमत्ताकालेण खवेदि चरिमझाणेण ॥ अणुदिपणाओ दुचरिमसमये सव्वाओ पयडीओ ॥ २१२४ ।। माबापंचककालेन तेन ध्यानेन वर्तते ।। प्रकृतीनामपकानां दासप्ततिमसौ समम् ॥ २१९८॥ विजयोदया-सो तेण स तेन पंचमात्राकालेनानेन ध्यानेन पयति विचरमसमये अनुदीर्णाः सर्वाः प्रकृती ॥ पंचल चक्षरोच्चारणकालभाविना तद्वयानेन करणीयामनुदीर्णत्रिसप्ततिकर्मप्रकृतिक्षपणामालक्ष्यति-~मूलारा-पंचमत्ताकाण अ इ उ ऋल इति पंचमात्रोच्चारणकालप्रमाणेन । अणुदिण्णाओ अनुदर्य प्राप्ताः |
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy