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________________ लाराधना -८२३ समहगुण कम हाल उसका अल्प स्थिति हावी है. चदुहिं समएहि दंड कवाड पदरजगपूरणाणि तदा ॥ कमली करेदि तह चैव णियन्ती चदुहिं समएहिं ॥ २११५ ॥ दंड का लोक चतुर्भिः समयोगी तावद्भिश्व निवर्तते ॥ २१८९ ॥ विजयोदया - चतुहिं चतुर्भिस्तमयैर्दण्डादिकं कृत्वा क्रमशो निवर्तते चतुर्भिरेव समयैः ॥ दंडादिप्रवर्तन निवर्तकालपरिमाणावधारणार्थमाह मुहारा -- चतुहि इत्यादि एकैकेन समयेन दंडादीन् कृत्वा क्रमेणैकैकेनैव लोकपूरणतो निवर्तयतीत्यर्थः ' अर्थ - चार समयों में क्रमशः दंडादिक समुदघात केवली करते हैं. अर्थाद प्रथम समय में दंड समुदघात, दूसरे समय में कवाद, तीसरे में प्रतर और श्रीथेमें लोकपूरण समुद्घात करते हैं, तद्नंतर उतरते वखत अर्थात् पांचवे समय में अंतराकार, छठे समय में कपाटाकर, सातवे समयमें दंडाकार और आठ समय में मूलदेव प्रमाण आत्माके प्रदेश होते हैं. करते हैं. काऊमाउसमाई णामागोदाणि वेदणीयं च ॥ सेलेसिमन्भुवेंतो जोगणिरोधं तदो कुणदि || २११६ || autoमगोत्राणि समानानि विधाय सः ॥ प्राप्तुं सिद्धिवधूं धीरो विधत्ते योगरोधनम् ॥ २१९० ।। विजयश्या - काऊण नामगोत्रषेदनीयानां बापा साम्यं कृत्वा मुक्तिमभ्युपनयन् योगनिरोधं करोति ॥ समुद्घातायुः समीकृत फर्म त्यानंतरकरणीयमाह - मूलारा- अच्भुत आश्रयन् ॥ अर्थ - नाम, गोत्र और वेदनीय कमकी स्थिति आयुके समान कर योगनिरोध से मुक्तिको प्राप्त १८२२ आश्वास ८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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