________________
O
Mect
मूलाराधना
आम्वासा
१८२४
योगनिरोधकममाच
बादरबचिजोगं बादरेण कायेण बादरमणं च ॥ बादरकार्यपि तथा रंभदि सुहुमेण कारण ॥ २११७ ॥ स्थूलो मनोवचोयोगी रुणद्धि स्थूलकायतः ।।
सूक्ष्म काययोगेन स्थूलयोगं च कायिकम् ॥ २१९१ ।। विजयोदया-पादरी पाजनोयोगी पादरकायेन रुगदि । बादरफाययोग सूक्ष्मेण काययोगेन || योगनिरोधक अभिधतेमूलारा-मादरेण कायेण स्थूल काययोगे स्थित्वेत्यर्थः । रंभदि निगृहात ।
अर्थ-वादर बचनयांग और चादर मनायोगको बादरकाययोगमें स्थिर होकर निरोध करते है तथा वादरकाय योगको प्रक्ष्म काययोगसे रोकते हैं.
तध चेय सहुममणवाजोगं सुहमेण कायजोगेण ॥ रंभित्तु जिणो चिट्ठदि सो सुहमे काइए जोगे ॥ २११८ ॥ सुक्ष्मी मनोवयोयोगो द्धे कर्मवर्जिनः ।।
सूक्ष्मेण काययोगेन सेतुनेव जलास्रवम् ॥ २५९२ ।। विजयोदयाप चैव तथैव सूकमयायनोयोगी सूक्ष्मकाययोगेन रूपाद्धि । मूलारा स्पष्टम् ।।
अर्थ-उसही प्रकारसे सूक्ष्म वचन योग और सूक्ष्म मनोयोगको सूक्ष्म काययोगमें स्थिर होकर निरोध करते है. और उसी काययोगसे ये जिनभगवान् स्थिर रहते हैं.
सुहमाए लेस्साए सुहमकिरियबंधगो तगो ताधे ॥ काइयजोगे सुहुमम्मि सुहमकिरियं जिणो झादि ।। २११९ ॥
१८२४