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________________ मूलाराधना आश्वास १८०५ SEARNIRAHASRANAMATA मूलारा-पषवणसंभिण्णमदी चतुर्दशपूर्भिस्तुतानुप्रविष्टबुद्धिः ॥ अर्थ--मोहनीयकर्मका क्षय करने में उद्युक्त होकर चौदहवों में कहे गये जीवादिक पदार्थोंके सरफ अपनी बुद्धिका उपयोग लगाते हैं. और परिणामोंको निर्मलकर पूर्वोक्त विधीसे धर्मध्यान करते हैं. संजोयणाकसाए खवेदि झाणेण तेण सो पढमं । मिच्छत्तं सम्मिरस कमेण सम्मन्तमवि य तदो॥ २.९२ ।। पूर्व संयोजनान्हन्ति तेन ध्यानेन शुद्धधीः ।। मिथ्यास्वमिश्रसम्यक्त्वत्रितयं क्रमतस्ततः ।। २१६५ ।। विजयोदया-संजोयणाकसाए मनतानुबंधिमा कोषमानमायालोभान क्षण्यति ध्यानन, तेनासा प्रथम मिथ्यात्वं, सम्पष्ठियथ्यात्वं, सम्यक्त्वं च क्रमेण एवं प्रकृतिसप्तकं विनाध्य क्षायिकसम्यग्दृष्टिभूत्वा भपकण्यधिरोहा. भिमुखोऽयधाप्रवृत्तकरण अप्रमत्तस्थाने प्रतिपय ।। धम्येध्यानक्षपणीयसम्यक्त्वघातिमोहप्रकृतिसमकक्षपणमुपदिशति मूलारा-संजोवण अनन्तसंसार कारणत्वादनंत मिष्यात्वं अनुचनेतीत्यनंतानुबंधिनः । कोषादीनामवस्थाविशेषाश्वत्वारः संयोजनाशट्रेनोच्यते । तेण धर्मेण । मिस मिश्यार्थाभिनिवेशनिमित्तं दृमोइनीयं । सम्मिरस सम्यकमिथ्यात्वं सामिशुद्धस्वरसं मिथ्यात्वमित्यर्थः सम्म सम्यक्त्वं शुभपरिणामनिरुद्धस्वरसे मिध्यात्वमित्यर्थः । तदुदपि तरवार्थअद्भानं स्यात् ॥ अर्थ-मिथ्यात्वको संसारका कारण होनेसे अनंत कहते हैं, इस अनंतका अर्थान मिथ्यात्वका संबन्ध करा देने वाले कषायाँको-क्रोध, मान, माया और लोभको अनंतानुबंधी कषाय कहते हैं. धर्मध्यानसे इन कषायोंका मुनिराज नाश करते हैं. तत्त्वोंपर मिथ्याश्रद्धान कराने वाली कर्म प्रकृतिको मिथ्यात्व कहते हैं. जिसमें आधी शु. द्धता उत्पन्न हुई है ऐसे कर्मको सम्मिश्र अर्थात् सम्यक् मिथ्यात्व कहते हैं. इस कर्मके उदयसे एक समयमें मिथ्यात्व और सम्यक्त्व परिणाम युगपत् उत्पन्न होते हैं. शुभपरिणामसे अतत्पश्रद्धान परिणाम उत्पन्न करानेवाली शक्ति जिसकी नष्ट होगई है ऐसे मिथ्यात्व प्रकृतिको सम्यक्त्व कहते हैं. इन सातोंका क्षय करके अप्रमत्त गुणस्थानवी । मनि क्षायिक सम्यक्त्वी होते है. तदनंतर धर्मध्यानसे धपकश्रेणीपर आरोहण करनेकोलिये उन्मुख होते हैं. SAGAS १८०५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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