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________________ मूलाराधना आश्वासः १८०६ क्षायिक सम्यग्दृष्टि होकर क्षपक श्रेणिपर चढ़ने के लिए उद्युक्त होते हैं तब प्रथमतः अप्रमत्त गुणस्थानमें अध: करणको प्राप्त होते हैं. अध खवयसेढिमधिगम्म कुणइ साधू अपुवकरणं सो॥ होइ तमपुवकरण कयाइ अप्पत्तपुवंति ॥ २०९३ ।। आरुह्य क्षपकश्रेणीमपूर्वकरणो यतिः ॥ भू यते रधानमनिरिगुणाभधम् ।। २१६६॥ विजयोदया-अघ खबमसेविमधिमम्म अथ क्षकश्रेणीमधिगम्य करोति साधुरपूर्वकरणमसा । किं तदपूर्व करणमित्याशंकायामुच्यते । होदि तमपुब्धकरणं भवति तदपूर्पकरण, कदाइ अप्पत्तपुब्बति कदाचिदप्राप्तपूर्वमिति । बमध्यानेनासंयतसम्यग्दध्यादिपु चतुर्वन्यतम स्थितः सम्यक्त्वघातिप्रकृतिसप्तकं निशात्य क्षायिकसम्यक्त्वमध्यास्य क्षपकण्यारोहणाभिमुखःभन्न प्रमत्तस्थाने तथा प्रवृत्तकरणमधिगम्य साधुरपूर्वगुणं झपकणिप्रथमसोपानमारोहवीत्युपदेष्टुमाह मूलारा- अध अपकण्यारोहणमधिक्रियते इत्यर्थः । सो धर्मध्यावसाधितप्रथम शुकृभ्यानोपक्रमः । कयाइ कदाचित । अनादिकाल । अपनपुनि पूर्व अप्राप्ता परिणामा यस्मिस्तदिदं अपातपूर्व यतः। अर्थ-क्षपक श्रेणिकी प्राप्ति होनेके अनंतर ये मुनिराज अपूर्व करणको करते हैं. यह अपूर्वकरण पूर्वमें कभी प्राप्त नहीं हुआ था. अतः इसको अपूर्वकरण यह अन्वर्थक नाम है. अनादिकालमें ये परिणाम इस जीवको प्राप्त नहीं हुए थे क्योंकि धर्मध्यानके अनंतर प्रथम शुक्लध्यानकी प्राप्ति पूर्वकालमें कभी नहीं हुई थी. -text * अणिवित्तिकरणणाम णवम गुणठाणयं च अधिगम्म ॥ णिहाणिद्दा पयलापयला तथ थीणगिाई च ।। २.९४ । * टिप्पणी-अध सो खवेदि भिक्खू अणियट्टिट्ठाणमुचगमित्ताणं । इति मूलाराधनायां पाठः ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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