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________________ मूलाराधना आश्वासः किंनरादिकन्याप्रलोभन लक्षणानुकूलोपसर्गेऽपि तस्य विस्मयाभावं ते ॥ मूलारा-नादि ऋदिकालते लोभवति । विश्य विनय कियामा ।। अर्थ---अनुपम ऋद्धि प्रगट करके किलर किंपुरुषादिककी देवकन्याए उनको लुब्ध करनका प्रयत्न मी करेंगी तो भी उनका मन आचर्यचकित नहीं होता है. १७८२ सव्वो पोग्गलकाओ दुक्खत्ताए जदि तमुवणमेज्ज ॥ तधवि य तस्स ण जायदि ज्झाणस्स विसोत्तिया को वि। २०४७ ॥ संपचतेऽखिलास्तस्य दुःखाय यदि पुनलाः॥ तथापि जायते जातु ध्यानपिनो न धीमतः॥२११८॥ विजयोदया-सब्बी पोग्गलकामओ सर्वे पुलद्रव्यं दुखतया यदि तमभिहति तथापि तस्य न जायते ध्यानस्पान्यथावृतिः॥ मूलारा-सब्बो त्रैलोक्योदरवर्ती । पोम्पलकामो पुदलद्रव्यं । दुक्खचाए दुःखतया । दु:खोपादरूपतयेत्यर्थः उवणमेज उपढौकेत । विसोत्तिया अन्यथाभाषः । आतेरौद्रपरिणतिरित्यर्थः । अर्थ-जगतके संपूर्ण पुद्गल दुःखरूप परिणतिको प्राप्त होकर उनको पीडा करनेके लिए उद्यत होनेपर भी उनका मन ध्यानसे च्युत नहीं होता है. सवो पोग्गलकाओ सोक्खचाए जदि वि तमुवणमेज्ज ॥ तध विहु तस्स ण जायदि उझाणस्स विमोत्तिया को वि.|| २०३८ ।। मुखाय यदि लभ्यते सर्वे पलसंचयाः।। तथापि धीरधी सी ध्यानसश्चलति स्फुटम् ॥ २११९॥ विजयोदया--स्पष्टोत्तरगाथा ।। मूलारा-सोक्खसाए सुखावहतया । १७८२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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