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________________ लाराधना १७७१ कमल्पेन कालेन निर्वृतिः साध्येत्याह--- मूला -- तत्थं तस्यां । पमाणं साधकतमं । तच्छा मुहूर्तमानायां स्थिताः । अर्थ - इतने अल्पकालमें कैसा मोक्ष प्राप्त होता है ऐसी शंका नहीं करना चाहिये. अर्थात् आराधनाका काल बढा होना चाहिये ऐसा कुछ नियम नहीं हैं. मुहूर्त मात्रमही कोई रत्नत्रय की आराधना करके संसार सं . मुद्रको लांघ गये हैं. खणमेचेण अणादेियमिच्छादिठ्ठी वि वणो राया ॥ उसहरस पादमूले संबुज्झिता गर्दा सिद्धि । २०२७ ॥ सिद्धो विवर्द्धनो राजा चिरं मिध्यात्वभावितः ॥ वृषभस्वामिनो मूले क्षणेन धुतकल्मषः ॥ २१०० ॥ इति निरुद्धतमम् । विजयोद्या-खणमेत्तण क्षणमात्रेणानादिमिध्यादृष्टिरपि धन्ननामधेयो राजा ऋषभस्य पादमूले सबुद्धो गतः सिद्धिं ॥ क्षणमात्राराधनायाः सिद्धिसाधनत्वमर्थाख्यानेन समर्थयते— महारा-दिवो विवर्धनो नामा | संबुझिसा सम्यगात्मानं आत्मनात्मनि संवेध ॥ अर्थ - अनादि मिथ्यादृष्टि ऐसा वर्धन नामका राजा ऋषभ भगवान के चरणमूल में आत्मस्वरूपका ज्ञाता होकर क्षणमात्रमें निर्वाण को माप्त हुआ. 1 सोलसतित्थयराणं तित्थुप्पण्णस्स पढमदिवसम्मि || सामण्णणाणसिद्धी भिण्णमुहुतेण संपण्णा || २०१८ || विजयोदयापरमनिरुद्धं ॥ सोम Ema आश्वास .. 19 21010
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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