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________________ वाराधना ७६८ शरीर. परिचारक इन सबका त्याग करना चाहिये. अर्थात् इनके ऊपरसे ममत्व हटाना चाहिये. तात्पर्य - जय बल और वीर्यकी हानि होती है तब परमण में गमन करने में असमर्थ सार्नको निरुद्ध कहते हैं. इससे भी जो अधिक असमर्थ होता है उसको निरुद्धटर कहते हैं. एवं णिरुदयं विदियं अभिहारिमं अवीचारं ॥ सो चेव जधाजोग्गो पुव्वुत्तविधी हवदि तस्स || २०२१ ॥ स्वगणस्थमिति प्राज्ञैर्निरुद्धतरमीरितम् ॥ अवशेषो विधिस्तस्य ज्ञेयः पूर्वत्र दर्शितः ॥ २०९४ ॥ इति निरुद्धतरम् । विजयोदया - स्पष्टार्थगाथा ॥ निरुद्धदरं ॥ मूलारा -- णिरुद्धतरगं सथो मरणकारणोपनिपातेन सुतरां बलवीर्याने परगणगमनेऽसमर्थान्निरुद्धात्प्रकर्षेणासमर्थो निरुद्धतरस्तद्योगान्मरणमपि निरुद्धतरं ततः संज्ञायां कः ॥ निरुद्धतरम् ॥ अर्थ -- तत्काल आयुका नाश करनेके कारण प्राप्त होनेपर बल और वीर्यकी अतिशय हानि जब होती है तब परगण में जानेके लिये जो मुनि अत्यंत असमर्थ होता है. अतः ऐसे साधुके मरणकोभी आचार्य निरुद्ध तरक मरण कहते हैं. निरुद्धत्तर मरणका वर्णन हुआ. बालादिजइया अक्खिता होज्ज भिक्खुणी बाया ॥ तझ्या परमणिरुद्धं भणिदं मरणं अवीचारं ॥ २०२२ ॥ यदा संक्षिप्यते वाणी व्याधिव्यालविषादिभिः ॥ तदां शुद्धधियः साधोर्निरुद्धतममिष्यते ॥। २०९५ ॥ विजयोदया - बालाविपद्दि व्यालादिभिः पूर्वोक्तः यदोपहतस्य वाम्यिनद्रा तदा परमनिरुद्धमरणं वाझिरो - थोऽत्र परमशब्देनोच्यते ॥ आश्वास ७ १७६८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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