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________________ मूलाराधना १७५७ गूलारा – आश्च्चइदूम प्रतिज्ञां कृत्वा । हिदा गृहीचा || अर्थ-वे क्षपक शूर और भगवान् अर्थात पूज्य है जिन्होंने संघ में प्रतिज्ञा कर आराधना पताका ग्रहण की थी ते धण्णा ते गाणी लद्धो लाभो म तेहि सब्वेहिं ॥ आराधणा भयवदी पडिवण्णा जेहिं संपुण्णा || २००२ ॥ ते धन्या ज्ञानिनो धीरा लब्धनिःशेषचिंतिताः ॥ पैरेपाराधना देवी संपूर्णा स्ववशीकृता । २०७५ ॥ विजयोदया -- ते घण्णा पुण्यवंतः ते ज्ञानिनः ते लग्धलामाः सर्वेभ्यो वैराराधना भगवती संपूर्ण प्रतिपन्ना ॥ मुलारा स्पष्टम् ॥ अर्थ- वे आराधक पुण्यवंत और ज्ञानी समझने चाहिये जिन्होंने उत्तम पुण्य देनेवाली भगवती आराधनाका स्वीकार किया था. इन आराधकोनेही वास्तविक जो प्राप्त करने योग्य था वह प्राप्त किया है. किं णाम तेहिं लोगे महाणुभावेर्हि हुज्ज ण य पत्तं । आराधना भगवदी सयला आराधिदा जेहिं ॥ २००३ ॥ किं न तैर्भुवने प्रास चंदनीयं महोदयः ॥ लीलाराधना प्राप्ता यैरेषा सिद्धिसंफली ॥। २०७६ ॥ विजयोदय– किं णाम तेहि लोग किनाम तेलोंके महानुभागमा वैराराधिता सकला आराधना भगवती ॥ मूलारा--स्पष्टम् ॥ अर्थ - इन महाभागोने संपूर्ण भगवता आराधना की आराधना की है. अतः इन्होने कोनसा अप्राप्त पदार्थ नहीं प्राप्त किया है ? अर्थात् सर्व लोकोत्तर पदार्थ उनको प्राप्त हुए हैं ऐसा समझना चाहिये. आश्वास। ७ १७५७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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