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________________ मूलाराधना आवास आत्मीयसमुदायस्थयखौ मते तस्मिन्दिने संघेनोपवासोऽनध्ययनं च कार्यमत्यगणस्थे तु मृतेऽनध्ययनमवश्य कार्यमुपवासस्तु विकल्प्य इत्युपदेष्टुमाघ--- मूलारा--असमाश्य अनभ्ययन संघेन कार्य । ण जहादि न पठति संधः । अर्थ-अपने गणका मुनि मरण को प्राप्त होनेपर उपवास करना चाहिये. और उसदिन स्वाध्याय नहीं करना चाहिये. परगणके मुनिका मृत्यु होनेपर स्वाध्याय नहीं करना चाहिये. उपवास करना विकल्प्य है अर्थात उपवास करे अपयन करे. एवं पडिष्टवित्ता पुणो वि तदियदिवसे उवेक्खंति ॥ संघस्स्स सुहाविहारं तस्स गदी चेव णा९जे ।। १९९६ ।।। गत्वा सुखविहाराय संघस्य विधिकोविदः॥ द्वितीयेऽहि तृतीये वा द्रष्टव्यं तत्कलेवरम् ।। २०६८ ।। विजयोदया-एवं पढिवित्ता उक्तम क्रमेण क्षएकशरीरं प्रतिष्ठाप्य पुनस्तृतीये दिवसे गत्वा पति, संघस्य सुस्वबिहारं तस्य च गति ज्ञातु ॥ तत्तीयदिनकृत्यमाह मूलारा-पडिवित्ता पकशरीरं प्रमुच्य । उबेरवत्ति तत्र गत्वा पश्यसि विधिना । सुहविहारं सुखाय देशांतरे गमनं । चेव तद्रायसुभिक्षादिक पेत्येवमर्थोऽध च | णाएंजे ज्ञातुं । फेषिरगुणोवीत्यत्र अपिशब्दमनुक्तसमुच्चयार्थमभिप्रेत्य द्वितीयदिनेऽसीति प्रतिपत्राततुक्तम्-- मत्या सुखविहाराय संघस्य विधिकोविदः । द्वितीयेऽडि सृतीये वा तद्रष्टव्यं कलेवरम् ॥ अर्थ-उपर्युक्त क्रमसे क्षपकके शरिकी स्थापना कर पुनः तीसरे दिन वहां जाकर देखते हैं. अर्थात् संघका सुखसे विहार होगा या नहीं और उसको कोनसी गति हुई है इसका परिज्ञान करनेकेलिये तिसरे दिन फिर वहां मुनि जाते हैं. ASSAREERA
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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