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________________ पाराधना १७४७ fers चैषममिवम् उपरि वैपम्ये गणिनो मरणं । मध्यवैपम्ये एलाचार्यस्य व्याधिः । अधो वैपम्ये यती नां व्याधिः स्यात् ॥ यदि असम रेखाए लिखी जाय तो दोष है इसका विवेचन- अर्थ---- ऊपर, मध्य में अथवा नीचे रेखाओं में यदि विषमता होगी तो वह अनिष्टसूचक हैं ऊपर की रेखायें विषम होंगी तो गणीका- आचार्यका मरण अथवा व्याधि सूचित होता है. मध्यकी रेखा विषम होनेपर एलाचार्य मरण अथवा व्याधि सूचित होता है और नीचेकी रेखा विषम होनेपर सामान्य यतीका मरण अथवा व्यधिक सूचना मिलती है. जन्तोदिसाए ग्रामो तत्तो सीसें करितु सोधियं ॥ उतरख बोसरिदन्त्रं सरीरं तं ॥। १९८६ ॥ ग्रामस्याभिमुखं कृत्वा शिरस्त्याज्यं कलेवरम् ॥ उमा कार्क किसके उप ॥ ए०५५ ॥ विजयोदय - जसो दिलाए गामो यस्यां दिशि ग्रामः ततः शिरः कृत्वा सर्पिछकं शरीरं व्युत्त्रयं उत्था नरक्षणार्थं ग्रामादिकमभिमुखतया शिरोरचना || तच्छरीरशिरः स्थापनादिर्श नियमयति मूलारा-जतो दिलाए यस्यां दिशि । सोबघिय सर्पिछकं शिरः स्थापयित्वा । प्रामवैमुख्येन शिरसि स्थापिते कदाचिन्मृतक मुसिछेदपीत्यभिप्रायं शिरः क्रियते । उक्तं च--- सद्ग्रामस्य दिशं केन कृत्वा सोपधिकं शिरः ॥ तदुत्थाननिषेधाय व्यत्स्रष्टव्यं कलेवरम् ॥ अन्ये तु दक्षिणहस्ते पिछे स्थाप्यते इत्याह । तथा चोक्तम्- ग्रामपराङ्मुखदनं संयम साधनसमन्वितं कृत्वा ॥ उत्तिष्टशार्थ विसर्जनीयं वपुस्तस्य ॥ अर्थ - जिस दिशा में ग्राम होगा उस दिशा में रखना चाहिये. ग्रामके सम्मुख मस्तक करनेका अभिप्राय मस्तक कर पिंछीके साथ उस शबको उस स्थान पर पूर्वमें लिख चुके हैं. आश्वास ફ १७४७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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