SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1756
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाराधना आवास। कुसमुधिं घेत्तूण य पुरदो एगेण होइ गंतव्वं ॥ अद्विवणियत्ततण पिट्टदो लोयण मुच्चा ॥ १९८२ ॥ परी गन्तव्यमेकन गृहीतकुशमुष्टिना ।। पूर्वावलोकनस्थाननिवर्तनविवर्जिना ।। २०५० ॥ बिजयाच्या कुसमुष्टि घेसूण कुशमा गृहीत्वा पुरस्तादेकेन गंतव्यं, अस्थि अनिवर्तमानेन अपृष्टायलोकिना। मृलारा--कुसमुदि मुष्टिधृतदर्भान । पुरदो अप्रे। मुथा त्यक्त्वा । अर्थ- उस शवके आगे एक मनुष्य मुहिम कुखदर्भ लेकर जावे, यह पीछे न देखे न मार्ममें ठहरे. तेण कुसमुद्विधाराए अब्बोन्छिणणाए समणिपादाए ॥ संथारो कादत्वो सब्वत्य समो सार्ग तत्थ ।। १९८३ ॥ कृत्यस्तत्र समस्तेन संस्तरः कुशधारया ।। अच्छिन्नया सकृदेश दीक्षिते समपातया ॥ २०६०।। विजयोदयातेण कुसमुहिधाराए तेन पुरस्तातेन पूर्वनिरूपित्तनिपीधिकास्थोन कुशमुष्टिधारया मम्युच्छिाया समनिपातया सर्वत्र समः संस्तर कार्यः॥ कुशमुष्टिकस्वमाह-- मूलारा--सेण पुरोगतेन । धाराप, धारया निक्षेपेण । अन्योच्छिण्णाए निरंतरया । समणिपादाप सशं पर्वया । कादयो प्रस्तरितव्यः । सांगें एकबारेण । तरथ पूर्वनिरूपितनिपीधिकास्थाने ।। अर्थ-जिसने निपीधिका स्थान प में देखा है वह मनुष्य वहाँ जाकर दमुष्टिकी समान धारासे सर्वत्र सम ऐसा संस्तर करना चाहिये. जत्थ ण होज तणाई चुण्णेहिं वि तत्थ केसरहिं वा ॥ संघरिदवा लेहा सन्वत्थ समा अयोच्छिण्णा ॥ १९८४ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy