SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1728
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आश्वासः मूलाराधना जे वि हु जहणियं तेउलेसमाराहणं उवणमंति । ते वि हु सोधम्माइस हवंति देवा ण हेडिल्ला ॥ १९४० ।। जघन्याराधनां देवीं संजोलेश्यापरायणाः ।। आराध्य क्षपकाः संति सौधर्मादिषु नाकिनः ॥ २०२० ।। विजयोदया-जे वि दु जहरिणयं यऽपि जघन्यामाराधनां तेजोलेश्यामवृत्तामुपनमंति तेऽपि सौधर्मादिषु देवाभवति ॥ नात्रोमाविनो नेवाः। जघन्याराधनाफलमा-- मुलारा-तेउलेस तेजोलेश्याप्रयूसां । ण देहिले नाचोभाविनः । अर्थ ... तेलोले शोधाकरापरी भासा जघन्याराधना कहते है इस आराधनाके आराधक क्षपक सौधर्मादिस्वों में देव होते हैं. इन देवोंसे हीन देवों में इनका जन्म नहीं होता है. किं जंपिएण यहुणा जो सारो केबलस्स लोगरस || तं अचिरेण लहंते फासित्ताराहणं णिखिलं ।। १९३१ ।। यहुनात्र किमुक्तन यत्सारं भुवननये ॥ आराध्याराधनां देवी लभते तन्मनीषिणः ।। २०२१ ॥ विजयोदया कि पिपण अष्टुणा किंयानोक्तेन यसर्वस्यास्य लोकस्य सारभूतं तदचिरेण लभते आराधन प्रपन्नाः । त्रिविधाया अप्याराधनाचा माहात्म्यमभिष्टौति-- मुलारा-.- केवलरस सरस्य । फासित्ता आराध्य । जघबाहुनोक्न कि सारो लोकस्य सकलस्य वः ॥ लभंते चिरापृष्टा सम्यगाराधनाविधिम् ।। अर्थ--अब हम और जादा नहीं कहते हैं जो संपूर्ण लोकका सारभूत पदार्थ है वह आराधनाओं को प्राप्त | हुए जीवोंको शीघ्र ही प्राप्त होता है . इसमें संदेह नहीं है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy