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________________ मूलाराधना आश्वास १७१६ अदीनमनसो मुक्त्वा कचारामिव विग्रहम् ।। देवेंद्रचरमस्थानं प्रपद्यन्ते बुधार्चिताः ॥ २०१७ ।। थिजयोदया-पजद्दिय देई विहाय देहं सम्यक्सदा सर्वगुणवर्धितगुणाच्या देवेंद्रचरमस्थानं लभते ।। मूलारा-सध्वगुणवद्धिदगुणा सर्वगुणेन सर्वोत्कृष्टगुणकारेण यद्धितगुणैरणिमादिभिः समृद्धाः । परिमठाणं उपरिमस्वर्गस्थानम् ।। अर्थ- औदारिक शरीरका त्याग कर संपूर्ण गुणोंके कारणोंसे अणिमादिक गुणाकी उनको प्राति होती है तथा देवेंद्रका अन्तिम पद उनको प्राप्त होता है, सुयभत्तीए विसुद्धा उम्गतवोणियमजोगसंसुद्धा ।। लोगतिया सुरवरा हवति आराधया धीरा ।। १९३८ ॥ जावदिया रिद्धीओ हवंति इंदियगदाणि य सुहाणि ॥ ताई लहति ते आगमेसि भद्दा सया खवया ॥ १९३९ ।। वर्यरत्नत्रयोद्योगाः कषायारातिमर्दिनः ॥ संति लोकांतिका देवा देहोद्योतिस पुष्कराः ।। २०१८ ।। ऋद्धयः संति या लोके यानींद्रियसुखानि च । क्षपकास्तानि लप्स्यन्तं सर्वापयेष्यत्यनेहसि ॥ २०१९॥ विजयोदया-जावडिया रिडीओ यावत्यः ऋद्धयो भनि यावंतीद्रिय सुखानि च मर्चति तानि सर्वाणि लप्स्यते भद्राशयाः क्षपकाः ॥ मूलारा--णियम अश्राइविशेषः। जोग भ्यानमासापनादि । मूलारा-लईति लप्स्यते । ते मध्यमाराधनाराधकाः। आगमोस आगामिनि काले । भहासया प्रशस्त चिताः । अर्थ-श्रुतभक्ति-सम्यग्ज्ञानाराधनासे जिनका मन निर्मल बना है; उग्रतष, विशिष्ट नियम, आतापनादिक योग और ध्यानसे जिनका आत्मा निर्मल बना है ऐसे धीर आराधक लोकांतिक नामक उत्कृष्ट देव होते है. इस जगतमे जितनी ऋद्धिया और इंद्रियसुख है वे सब निर्मल परिणामके क्षपकोंको अवश्य प्राप्त होते हैं, ७ .
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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