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________________ मलायम भ আঘাম। १६८९ का आलंबन इस ध्यान में नहीं रहता है. सयोग केवली मुनि का यह ध्यान अवीचार है अर्थात् इस ध्यान में एक पदार्थ का आश्रय लेकर उसको छोडकर दूसरे पदार्थका आश्रय लेना यह क्रिया नहीं होती है. अर्थात् संपूर्ण पदार्थ उनके केवल चानमें प्रतिक्षण युगपत् जाने जाते हैं. अतः यह ध्यान । अवीचार ' है. सूक्ष्म क्रिया करने बाला आत्मा इस ध्यान का स्वामी है. अर्थात् इस ध्यानमें आमा मनोयोग. वचनयोगको सूक्ष्म करता है. यह ध्यान सूक्ष्म काययोग से प्रात होता है. विकालको विषय होनेवाले जीवादि छह पदार्थोंको युगपत्प्रगट करनेका इस भ्यानका स्वभाव है. युगपन सर्व पदार्थाको प्रगट करना यही एकाग्रता इस ध्यान में है. पदार्थ के अभिमुख होना यह ध्यान शब्द का अर्थ है. ' एकाग्रचितानिरोधो ध्यानम् ' इस सूत्रमें चिंता शब्द ज्ञानसामान्यका वाचक है. इसलिए कचित् श्रुतज्ञानको ध्यान कहते हैं, शचित् केवल ज्ञानको और क्वचित् मतिज्ञानको तथा मत्यज्ञानको और श्रुताशानको भी "यान कहते हैं. एक पदार्थ पर स्थिर होना यह ध्यान का लक्षण है. यह स्थिरत्व सर्व ज्ञानोपयोगी है. सुहुमम्मि कायजोगे बढ़तो केवली तदियसुक्कम् ।। झायदि णिरंभिदुंजे सुहुमचाणकायजोगपि ॥ १८८७ ॥ सर्वभाषगत शुक्लं विलोकिसजगत्त्रयं ॥ सर्वसूक्ष्मक्रियो योगी तृतीयं ध्यायति प्रभुः ॥ १९५२ ॥ विजयोदया-सुमंम्मि कायोगे सूक्ष्मे काययोगे प्रवर्तमानः केवली तृतीय शुक्लं भ्याति निरोधतमपि सूक्मकाययोग। प्रथमं परमशुक्लं अन्धर्थसझया लायति मूलारा- सुहुमकिरियपंधर्ण सूक्ष्मा क्रिया आत्मा स बंधनमायो यस्येसि सूक्ष्म कियधनं । भणि सूक्ष्म काययोगे सति प्रवृत्तम्तत्सूक्ष्म क्रियमिति भणितमिति संबंधः । सध्वभावगर्द त्रिकालगोचरतानंतसामान्यविशेषात्मक द्रव्यपदफयुगपरप्रकाशनस्य रूपं एकमग्रं मुखं यस्येत्येकाप्रताप्यस्य विद्यते इति ध्यानशब्दोऽपि मुरुयो घटते ॥ एकाग्रनितानिरोधो ध्यानमित्यत्र च सूत्रे पिताशब्दो मानसामान्यवचनः । तेन भुतिज्ञानं कचिदष्यानमित्युरुयते, क्वचिकेवलज्ञानं, कचिन्मतिज्ञान, कचिका श्रुताज्ञानं, मत्यज्ञानं वा यतोऽबिचलमेव ज्ञान ध्यानम् । तदुक्तम् १६८९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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