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________________ मूलाराधना आयास: ORICp4 TA द्वितीयस्य सवितर्कत्वमाह--- मलारा--स्पष्टम् ।। अर्थ-यह भ्यान एक द्रव्य का ही आश्रय करता है इसलिये परिमित अनेक पर्यायों सहित अनेक व्यों का आश्रय लेनेवाले प्रथम शुक्लभ्यानसे भिन्न है, तीसरा और चौथा ध्यान सर्व वस्तुओंको विषय करते हैं अतः इनसे भी यह दुसरा शुक्ल ध्यान भिम है. ऐसा इस गाथासे सिद्ध होता है. इस ध्यानका स्वामी क्षीण बपायवाला मुनि है. पहिले भ्यानका स्वामी उपशांत कपायवाला मुनि है, और तीसरे नया चौथे शुक्ल ध्यानका स्वामी सयोग केवली और अयोग केवली मुनि है अतः स्वामित्वको अपेक्षासे दूसरा शुक्ल ध्यान इन ध्यानोसे भिन्न है. ---- - - - तृतीयध्यानमाचरे ॥ __ अवितक्कमबीचारं सुहुमकिरियचंधणं तदिवसुक्कं ।। सुहमम्मि कायजोगे भणिदं तं सबभावगदं ॥ १८८६ ॥ विजयोदया-अषितपकमबीयार थुतानालंघनत्वादधित स्त्रयं ध्रुतमाने भवतीति वा अवितर्फ पूर्वमालंयी. कृतादादातरालघनत्वं नाम वीचारो नास्तीत्वविचार, सुहमकिरिवयंधणं सूक्ष्मक्रियास्येति सूक्ष्मक्रिया आरमसंवैधनमाधयोऽस्थति सूक्ष्ममियाबंधनः, सूतीपशुक्ल, मुमम्मि काययोगे सूक्ष्मकापयोगे सति प्रवृत्ते, भणितं सूक्ष्मक्रियमिति तं लघ्वभावगर्द तृप्तीयं शक्लध्यान त्रिकालगोचरानंतसामान्यधिशेषात्मकद्रव्यपदयुगपत्यकाशमस्वरूप, युगपापकाशनमेकम मुखमस्थति ॥ पफमुखतापि विद्यत इति ध्यानशनस्रार्थोऽमिमुगे विद्यते ॥ एकाचितानिरोधो ध्यानमित्या सूत्र चिताशब्दो ध्यानसामाग्यवचनःतेग अतश्शानं कचिध्यानमित्युच्यते, कचिरकेवलशाम कचितशानं चिन्मतिझाने मन्यमान वा. यतोऽविचलत्यमेव ध्यान, ज्ञानस्य तस्यानिचलत्वं साधारण सर्वज्ञानोपयोगानां । तस्यैवावीचारत्वं यूते-- मूलारा-पष्टम् ।। वीसरे ध्यानका स्वरूप कहते हैं-- अर्थ---तीसरा सूक्ष्मक्रिया नामक शुक्लः ध्यान वितर्करहित अर्थात् श्रुतज्ञान रहित होता है. श्रुतज्ञान STAHSTANSAR StezeroJerrer ६८८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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