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________________ आश्वास मूलाराधना १६८९ ध्याताको ध्यानके लिए अनेक आलंघनोंकी आवस्यकता है. इस विषयका विवेचन-- अर्थ-वाचना, प्रच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा ये सब धर्मध्यानके आलंबन हैं. इनके आश्रयमे धर्मध्यान उन्नत दशाकी प्राप्ति कर लेता है. इस लिए पूर्वोक्त द्वादशानुप्रेक्षायें भी धर्मध्यानके अनुकूल ही हैं. धर्मध्यान करनेकी इच्छा करनेवाले यतिराजको यह संपूर्ण लोक भी आलंबन है. क्षपक जो जो चीज देखेगा वह २ ध्यानकी आलंबनभूत होगी. धर्मध्यानं व्याख्याय स्थानांतरं व्याख्यानुमुत्तरप्रबंधः-- इच्गानिकतो धामझा जदा हवइ खत्रओ ॥ सुऋज्झाणं झायदि तत्तो सुविसुद्धलेम्साओ । १८७७ ।। धर्मध्यानमतिक्रांतो पदा भवति शुद्धधीः । शुद्धलश्यस्तदा ध्यान शुक्लं ध्यायति सिद्धये । १९४७ ।। पिंजयोदया- इच्चे धमनितो धर्मध्यानमेवं व्यावर्णितरूपमतिक्रांतो यदा भवेत् क्षणकः शुक्लध्यानमसौध्यानि सुविशुद्धलेश्यासमन्वितः ॥ परिणामयेण्या हि उत्तरोत्तरानुगुणतया स्थितः । क्रमेणैव प्रवर्तते न हि प्रथमे सोपाने स्थापित करणः द्वितीयादिकं सोपानमारोढुं प्रभवति ॥ परमप्रभत्तो धर्मध्यान प्रवृत्त पय शुक्लध्यानमतीति सूत्रेणानमसापित एवं धगध्यान व्याख्याय शुक्लं प्रवन व्याचिग्यासुरप्रगनी धम्में शुक्लमहतीति ज्ञापयति मुलारा-सुविसुद्धलेस्साओ परिणामश्रेण्या हुत्तरोऽनुगुणतया स्थितोपक्रमेणैव प्रवर्तमानो न हि प्रयमे सोपाने स्थापितपादो द्वितीयादिकं सोपानमारोढुं क्षमते धर्मध्यानकं अनंतर शुक्ल ध्यानका सविस्तर आचार्य वर्णन करते हैं-- अर्थ-जिसका स्वरूप पूर्वमें वर्णित हुआ है ऐसे धर्मध्यान के अनंतर क्षपक शुक्ल ध्यानका चिंतन करता है. तब विशुद्ध लेण्यायुक्त होता है अर्थात् उस ध्याताके परिणामोंमें क्रमसे अधिकाधिक निर्मलता आती है. जैसे जिसने प्रथम सोपान पर पैर रखा है वह दुसरे सोपानपर आरूद नहीं हो सकता है. अर्थात प्रथम सोपानपर आरूढ होकर ही दिखीय सोपानपर-सिंडीपर अनंतर पैर रख सकता है. वैसे यहाँ मी धर्मध्यान के १६८१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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