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________________ आश्वासः धूलाराधना . १६७१ विजयोदया–सम्मइसणतुब द्वादशांगारकं व्रतनेमिकं तपोधार जिनेंद्राणां धर्मचक जगति जयति ॥ धम्म ॥ | धर्म स्तोतुमाह - मूलारा-तुवं नाभिः । दुवालसंगारयं मुन्याचारादीन्याचाराणि यस्य । वदनेमियं प्रतमेव नेमिर्धारा यस्य । तबोधारं तप एव धारा द्वितीया नेमियस्य । धर्मानुप्रेक्षः || धर्मकी स्तुति करते हैं. अर्थ----धर्मरूप चक्र सम्यद्गर्शन रूप तुंबा है, इस धर्मचक्रको दादांमज्ञान रूप ओर हैं, पांच महावत नेमिके स्थानमें हैं. और तप धारा है. ऐसा जिनेंद्रोंका यह धर्मचक्र जगत में जयवान रहे. बोधितुलभानुप्रेक्षा कथ्यते-- दसणसूदतवचरणमइयम्मि धम्मम्मि दुल्लहा वोही : जीवस्स कम्मसत्तरस संसरंतस्स संसारे ॥१८६६।। धर्मे भवति सम्यक्त्वज्ञानवृत्ततपोमये ॥ दुर्लभा भ्रमतो योधिः संसारे कर्मतोऽगिनः ।। १९३७ ॥ विजयोदया-ईसणसुदतवचरणामइयम्मि दर्शनश्रुतत्तपश्चरप्पमये धर्मे दुर्लमा चोधिर्जीवस्य कर्मसक्तस्य संसारे संसरतः॥ धोलपनत्वेन योधि गावाटकेन भावयति मूलारा-बोधी दीक्षाभिमुखा बुद्धिः प्राप्तिर्वा शेधिशब्देने होच्यते । रत्नत्रयप्रामिः खलु बोधिः प्रसिद्धा । कम्मसन्तस्स कर्मप्रस्तस्य कर्मणि वा कायादिव्यापारे सक्तस्य प्रयतस्य ।। घोधिदुर्लभानुप्रेक्षाका वर्णन-- अर्थ-सम्यग्दर्शन, सम्यम्नान, तप और चारित्र एतत्स्वरूप धर्ममें चोधिको प्राप्ति होना दुर्लभ है, यह जीव कर्मस लित है और संसारमें भ्रमण कर रहा है इसको बोधिप्राप्त होना कठिन है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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