SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1681
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाराधना १६७० इ६ धर्मचारित्रभित्याख्यातुमाइ - मूलारा - अणवज्जं निरतिचारम् । अर्थ - जिसका चारित्र निर्दोष है, संसारदुःखोंको करनेवाले कर्मका आनेका द्वाररूप जो अविरत्यादि परिणाम जिससे बंद पडता है ऐसा निर्दोष चारित्र जिसने धारण किया है उसी मनुष्यका जन्म सफल माना जाता है. उपर्युक्त चारित्रकोही यहां धर्म समझना चाहिये. पुरुषस्य ॥ आता है. जह जह णिव्वेदसमं बेरगयामा पवति ॥ तह तह अवभासयर णिव्त्राणं होइ पुस्सिस्स || १८६४ | यथा यथा विवर्द्धते निर्वेदप्रसादयः ॥ प्रयात्यासन्नतां पुंसः सिद्धिलक्ष्मीस्तथा तथा । १९३५ ।। विजयोद्या यथा यथा निर्वेद उपशमो दा भिखानिग्रहथ प्रवर्तते तथा तथा समीपतरं नवति निर्वाण सद्ध काय निर्वाणाम्यचरत्वमाद- मूलारा अभासद सभीपतरम् ॥ अर्थ -- जैसे र वैराग्य, रागद्वेषों का प्रशम, दया, जितेंद्रियता ये गुग बाँगे तैसे २ पुरुषके पास मोक्ष धर्म स्तीति सम्मदंसणतुंबं दुवालसंगारयं जिर्णिदाणं ॥ वयमियं जगे जयइ धम्मचक्रं तवोधारं ॥ १८६५ ॥ द्वादशात्मकतपोरयंत्रितं तत्वबोधचित्तनेमिकम् ॥ धर्मचक्रमनवयमा विष्ट विजयतामनश्वरम् ।। १९३६ ।। ॥ इति धर्मानुप्रेक्षा ॥ अश्वासा 15 १६७०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy