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मूलाराघना
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शत्रुका नाश, ऐसे सर्वोत्कृष्ट पदार्थोंकी प्राप्ति हो. सातिशय स्त्रीपना, माहात्म्ययुक्तं पुरुषपना मेरेको प्राप्त हो ऐसी अभिलाषा रखना सम्यग्दर्शनका अतिचार है ऐसा यहां समझना
विचिकित्सा जुगुप्सा, तिरस्कार इनको यदि अतिचार कहोगे तो मिथ्यात्व असंयम इत्यादिकों में जुगुप्सा तिरस्कार होता है वह भी अतिचार है ऐसा मानना पड़ेगा.
यी
विषय नियत समझना चाहिये. अर्थात् नियत विषयमधी
जुगुप्साही अतिचार है ऐसा समझना चाहिये.
रत्नत्रयमेंसे किसी एक में अथवा रत्नत्रयधारकांमें कोपादिकसे जुगुप्सा होना यहां सम्यग्दर्शनका अतिचार हैं. इस जुगुप्साके वश होकर सम्यग्दृष्टि जीव अन्य मध्य के ज्ञान, दर्शन वा आचरणका तिरस्कार करता है. जिसमें ये सम्यग्दर्शनादिक निरतिचार है ऐसे पुरुषका वह तिरस्कार करता है, अतः ऐसी जुगुप्सासे रत्नत्रयके माहात्म्यमें अरुचि होनेसे इसको अतिचार समझना योग्य है.
परदृष्टिप्रशंसा प्रतिचार यहां पर शब्दके अनेक अर्थ है. जैसे 'नापरीः ग्रामः पाटलिपुत्रात् पाटलिपुत्रसे और दुसरा गांव नहीं है. यहां अपर शब्द अन्य बाची है. ' परे आचार्या ' अन्ये आचार्याः ' अर्थात् दूसरे आचार्य यहां 'पर' शब्दका अर्थ ' अन्य ' ऐसा समझना इष्टार्थमें भी पर शब्दका प्रयोग होता है जैसे परं धाम गतः अर्थात् इष्ट स्थानको वह चला गया. प्रस्तुत प्रकरण में पर शब्द अन्यार्थवाची है. तत्वदृष्टीसे-पारमार्थिक दृष्टीसे विपरीत दृष्टि जिनकी है ऐसे सांख्य, बौद्ध, जैमिन्यादि मतके विद्वानांकी परदृष्टि कहते हैं. उनकी प्रशंसा करना यह सम्यग्दर्श नका मल हैं.
अनायतनसेवना - अनायतनके छह भेद हैं. अर्थात् मिथ्यात्व, मिध्यादृष्टि जन, मिथ्याज्ञान, मिध्या ज्ञानी, मिथ्याचारित्र और मिथ्याचारित्रवान् इन ग्रहोंमेंसे मिध्यात्व अनायतनका अर्थ अतश्वश्रद्धान ऐसा होता है. यदि भव्य जीव मिथ्यात्वकी सेवा करेगा तो वह मिथ्यात्वीही होगा, सम्यग्दर्शनही उसका नष्ट हो गया ऐसा समझना शाहिये. इसलिये 'मिथ्यात्व ' यह सम्यग्दर्शन का अतिचार नहीं है. वह अनाचार हैं. मिथ्यादृष्टिसेवा - मिथ्यादृष्टियों को अच्छा समझकर उनका आदर करना. मिथ्याज्ञानसेवा - मिथ्यामतके तत्व अच्छे हैं ऐसी भावना श्रीवर्गके मनमें मैं उत्पन्न करूंगा ऐसा विचार करके नया की अपेक्षा छोडकर मिथ्यात्व का उपदेश करना.
आश्वासः