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________________ .... nilesapana -लाराधना यामास मिथ्यात्यका लक्षण है इसका आसे आचार्य विवेचन करेंगे. इस संशयमिथ्यात्वमें सहे तच्चके प्रति अरुचि भाव रहता है. यह मिथ्यात्व मिथ्याज्ञानसे मिन्न वस्तु है. ' मिच्छाणाण मिच्छादसण मिच्छाचारितादो पहिविरदो मीति' अर्थात मिथ्यासान, मिथ्यादर्शन और मिथ्याचारित्र इनसे मैं विरक्त हुवा हूं, इस वाक्यसे मिध्याज्ञान और मिथ्यादर्शन ये भिन्न चीजें हैं ऐसा सिद्ध होता है. छमस्यों को भी दोरी, मर्प, खुट, मनुष्य इत्यादि पदाथोंमें यह रज्जू है ? या सर्प है? यह खट है या मनुष्य हे इत्यादि अनेक प्रकारका मंाय उत्पन्न होता है. नो भी वे सम्पराधि ही है. इतने विवेचनका सारांश यहां एसा समझना चाहिये-- मिथ्यात्व कभके उदयस सत्र सझयरूपही तत्वोम अरुचि पैदा होती है। इस असाचको संशयज्ञानका सहाय मिलता है इसलिये इसको संशयमिथ्यात्व कहते हैं. आगमकथित जीवादिक पदार्थोंमे ज्ञानावरणकमेके उदयसे और सम्यक्त्वप्रकृतिके उदयसे जो यह वस्तु स्वरूप है या यह है ऐसी जो चंचल मति होती है उसको शंका अतिचार कहते हैं यह अतिचार सम्यग्दर्शनको मलिन बनाता है इस लिये यह अतिचार है. दोरी, साप, पुरुष, खूट इत्यादिकॉमे जो संशय होता है वह यदि अतिचाररूप माना जावेगा तो सम्यग्दर्शनका निःशकितांगही दुर्लभ हो जायगा. कांक्षा-इष्ट पदार्थोपर जो आसक्ती अथवा लंपटता होती है उसको कांक्षा कहते हैं. यह कांक्षा सम्यग्दर्शनफा अतिचार है. शंका-यदि कांक्षाको अतिचार कहते हो तो आहारमें अभिलाषा उत्पन्न होती है. स्त्री, वख, अत्तर, पुष्पहार, अलंकारादिकोंमें असंयत सम्यम्हष्टिको और विरताविरत अर्थात् अहिंसावणुव्रत पालनेवालाको अभिलाषा उत्पन्न होती है. छवे गुणस्थानवर्ती मुनीकोमी जब ये क्षुधादि परीपहोंसे व्याकुल होते हैं तब आहारमें, पेयपदार्थोमें अभिलाषा उत्पन्न होती है. इसलिये उनके सम्यग्दर्शन में भी यह अतिचार उत्पन्न होगा. सभी भम्याको सुखोकी इच्छा रहेगी ही अतः इच्छाको अतिचार मानना युक्तियुक्त है नहीं. उत्तर .. केवल इच्छाको अतीचार हम भी मानते नहीं. किंतु इस सम्यग्दर्शनके प्रभावसे, दानके सामयमे, देवपूजा और तपश्चरणके शक्तीसे मेरेको जो पुण्य उत्पन्न हुवा है उससे कुल, रूप, ऐश्वर्य, स्त्री पुत्रादिक, 2 .
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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