________________
आश्वासः
सम्यग्दर्शन निरतिचार और गुणोंसे उज्ज्वल करनेका अभ्यास करना चाहिये. इसका आचार्य विस्तारसे नर्णन करते है. प्रथमतः सम्यग्दर्शनके अतिचारोंका वर्णन करते हैं.
हिंदी अर्थ-शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, परररिप्रशंसा व अनायतनगर से सम्मलवाने पांच अतिचार हैं.
विशेषार्थ--यस्तुका स्वरूप यह है अथवा यह है ऐसा अनिश्चयात्मक जो ज्ञान उसको शंका फहते है. यह शंका निश्चयज्ञानका आश्रय करनेवाले सम्यक्त्वको मलिन करती है.
शंका-यदि सम्यग्दर्शन हो तो उसका शंका अतिचार मानना योग्य है. परंतु संशय मिथ्यापनाको धारण करता है अर्थात् संशय स्वये मिथ्यात्य ही है. मिथ्यात्वोंके भेदोंमें आचार्योने संशयकी भी गणना की है. 'संशयित, अभिग्रहित और अनभिग्रहित ऐसे मिथ्यात्वके तीन भेद हैं, 'ऐसे आगममें उल्लेख पाये जाते हैं.
उत्तर-आपका कहना ठीक है. संशयके सद्भावमें भी सम्यक्स्य रहताही है. अतएव संशयको अतिचारपना मानना युक्तियुक्त है, इसका स्पष्टीकरण ऐसा है-अपनेमें श्रुतज्ञानावरणीय कर्मका विशिष्टक्षयोपशम न होना, विद्वान्. उपदेशकका अभाव रहना, अथवा उपदेशक होकर भी उसमें वचनचातुर्यका अभाव रहना, संशय दूर करनेवाले आगमके वचन न मिलना, अथवा उसका अभाव रहना, कललब्धिकी प्राप्ति न होना इत्यादि कारणोंसे वस्तुस्वरूपका निर्णय नहीं होता है. तो भी जैसा सर्वज्ञ जिनेश्वरने वस्तुस्वरूप जाना है वह वैसाही है ऐसी मैं श्रद्धा रखता हूं ऐसी भावना करनेवाले भव्यके सम्यकचकी हानि कैमी होगी अथान् शंका नामके अतिचारसे उनका सम्यग्दर्शन ममल होगा परंतु नष्ट न होगा.
उपयुक्त श्रद्धाग जो रहित है वह हमेशा मंशयाकुलही रहना है. वास्तविक नयस्वरूप क्या है ? उसको कनि जानता है कुछ निर्णय कर नहीं सकते ऐसी उसकी मति रहती है. कपिल, युद्ध वगैरे नवेज़ थे इसका निर्णय नहीं होता है. यदि अहन सर्वज्ञ होता है कपिलादि सवन नहीं होने है एमा मानकर आगमके द्वारा निर्णय मानना भी वह संशयमिथ्यात्वी कबूल नहीं करता है. कौनसा आगम वस्तुके यथार्थस्वरूपका प्रतिपादन करता है और कौनसा नहीं यह भी निर्णात नहीं है अर्थात् आगमके विषयमें भी संशय है ऐसा संशयमिथ्यात्वी कहेगा. इसलिये उसकी तच्चके ऊपर अश्रद्धा संशयज्ञानसे सहित होनेसे वह संशय मिथ्यात्वही है. तत्त्वोंके अर अश्रद्धान होना यह
NNARESISTASHTOTRNATHERISTMANGERTAINMENT
-
A
१४६
-
-
PARAN