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________________ मूलाराधना १६६० मावनिर्जरा है. हलका कमपर्याय नष्ट होना निर्जराका लक्षण है. इसके भी दो भेद है. विपाकजाता निर्जरा और अविपाकजाता निर्जरा. अत्र दृष्टांतमाचऐ द्विविधां निर्जरामवगमयितुं -- काण उवायेण य पचति जहा वणादिफलाई | तह कालेन तवेण य पचति कदाणि कस्माणि ॥। १८४८ ॥ नानाविध कर्माणि गृहीतानि पुराभवे ॥ फलानीव विपच्यते कालेनोपक्रमेण च ।। १९२० ।। विजयोदया कालेा उचारण य यथा कालेनोपायेन च वनस्पतीनां फलानि पच्यते तथा कालेन तपसा पच्यते कृतानि कर्माणि ॥ कर्म कालोपायानां पाक्यत्वं दृष्टान्तेन स्फुटयति मूलारा- उदारण ऊष्मधूमादिप्रयोगेण । दृष्टांतके द्वारा इनका स्पष्टीकरण अर्थ — जैसे वृक्षोंके फल योग्य कालकी अपेक्षाकर अर्थात् योग्य काल प्राप्त होनेपर पक्क होते हैं अथवा उपायसे पक्कावस्था को प्राप्त होते हैं वैसे पूर्व कर्मभी योग्यकाल प्राप्त होनेसे तथा तपसे पक्क होते हैं. योनिर्जरयोः का कस्य भवतीत्याशंकायामाच सव्वा उदयसमागदस्त कम्मस्स णिज्जरा होइ ॥ कम्मरस तवेण पुणो सव्यरस वि णिज्जरा होइ || १८४९ ॥ कालेन निर्जरा नदीर्णस्यैव कर्मणः ॥ तपसा कियमाणेन कर्म निर्जीर्यतेऽखिलम् || १९२९ ।। विजयोदया सब्वैसमुदयस मागदस्य सर्वेषां समयपूर्वके तपसि वृत्तानां अबूतानां अथवा मिध्याह प्रचादीनां सम्यग्दृष्ट्यादीनां वा उद्यापलिकाप्रविष्टस्य सस्य फलस्य कर्मणो निर्जरा भवति । एतेन विपाक निर्जरा आश्वासः ७ १६६०
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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