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________________ मूलाराधना आश्वासः १६५९ संवरणैव कर्मक्षय इति मत्या तपस्यनुत्सहमानमुत्साह्यतिमुलरा----उपभोगादीहि स्वयमुपभोगपात्रविनियोगादिभिः ।। अर्थ-तप से ही केवल कर्मके संवरसे मोक्ष नहीं होता है. जिस धनका संरक्षण किया है वह धन उपभोग नहीं लिया तो समाप्त नहीं होगा इसलिए कर्मकी निर्जरा होने के लिए तपश्चरण करना चाहिये. पुवकदकम्मसडण तु णिज्जरा सा पुणो हवे दुबिहा ॥ पढ़मा विवागजादा विदिया अविवागजाया य ।। १८४७॥ पूर्वस्य कर्मणः पुंसो निर्जरा द्विविधा माता ।। आद्या विपाकजातात्र द्वितीया त्वचिपाकजा ॥ १९१९॥ विजयोयया-पुरवगनकम्मसक्षण पूर्वगतकर्म पुलस्कंधावयवानां जीवप्रदेशेभ्योऽपगमनं निर्जरा तथा चोक्तं । एकदेशकर्मसंक्षयसकारेति । निजामानिरासपिजरा चेति । द्रव्यनिर्जरा नाम गृहीताना. मशनपानादिदव्याणां एक.देशाधगमनं घमनादि । भारनिरा नाम कर्मत्वपर्यायीवगमः पुगलानां । सा पुन िविधा, आधा विपाकजाता द्वितीयाऽविपाकजाता। निर्जरां द्विधिकल्पां निर्दिशति-- मूलारा-पुठबकयकम्मसडणं प्रासंचितकर्म पुरळस्कंधावयवानां जीवप्रदेशेभ्योऽपगमनम् । विवागजादा म्बका लेन दत्तफलानां कर्मणां गलनं विपाकजा निर्जरा । अविवागजादा उपक्रमेण दत्तफलानां कर्मणां गलगमविपाक जा । उक्त च जह क्रालेण तबेण य मुत्तरस कम्मपुरगलं जेण ॥ भावंण सदि गया तस्सडण दि गिजरा दुबिहा ॥ अर्थ-पूर्व कर्मके स्कंधोंमेंसे थोडा घोडा कर्मका हिस्सा जीवके प्रदेशोंसे निकल जाना यह निर्जराका खरूप है. आगममै इस निर्जराका लक्षण ऐसा किया है- 'एकदेशकर्मसंक्षयलक्षणा निर्जरा । अर्थात् कर्मक एक देशका क्षय होना यह निर्जराका लक्षण है. निर्जराके द्रव्यनिर्जरा और भावनिर्जरा. ऐसे दो भेद हैं. भक्षण किए हुए अन्नपानादि पदार्थोंका एक देशका क्षय होना यह द्रव्यनिर्जरा है. और वमन होना अथवा पूर्ण पचन होना यह PATHARTeries १६५९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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