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नूलाराधना
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समिदिदिढणावमारुहिय अप्पमन्तो भवोदाधे तरदि ॥ छज्जीवणिकायवधादिपावममरेहिं अच्छितो ।। १८४१ ॥ गुणबंधनमारुत्य संयतः समितिप्लवं ॥
हिंसादमकराग्रस्तो जन्मभोधिं विलेघते ॥ १९१३ ॥ विजयोदय-समिदिश्विनावमारुद्विय समितिसंज्ञितां दहनावमारुह्य । अयमन्तो अप्रमत्तो भोदधि तरति । पजीवनिकायाधादिपापमकरेरस्पृष्टः ॥ एतेन सर्मितः संवरताख्याता ॥
समितीनां संवरत्वमाह
मूलारा- अदिको अस्पृष्टः ||
अर्थ- जो यमितिरूपी व नात्र आरोहण करता है यह अप्रमत्तमुनि परकायजीवोंका वध, असल्य भाषणादिपापरूपमगसे पीडित नहीं होता है. और वह सुखसे संसार उत्तीर्ण होता हैं. समिि संवर होता है यह इस सूत्र सिद्ध हुआ
arta दारवालो ह्रिदये सुप्पणिहिदा सदी जस्स ॥
दोसा संति ण तं पुरं सुगुतं जहा सत्तु || १८४२ ॥ द्वारपाल द्वारे यस्यास्ति हृदये स्मृतिः ॥ दूषयति न दोषा गुप्तं पुरमिवारयः || १९९४ ।। विजयोदया - दारेघ दारवालो द्वारे
भिभवति पुरं सुगुर्त शश्रय इव ।
स्तुवत्वस्मृतेः संवरतां वक्ति
द्वारपाल इव । हृदये सम्यक्प्रणिहिता वस्तुमानां स्मृतिस्तं शेष ना
* मूलारासदी वस्तुतस्वचित्तनम् ॥ देवेति ण नाविभवन्ति ।
अर्थ -- जैसे सुरक्षित नगरका शत्रु विनाश नहीं कर सकते हैं वैसे जिसके हृदयमें दरवाजेपर द्वारपालके समान वस्तुतत्वोंकी एकाग्रस्मृति स्थिर रहती है. दोष उसका पराभव नहीं करसकते हैं.
आश्वास
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