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________________ मृलाराधना आश्वास Rossa SSAGE क्षमा. मार्दव, आर्जव, और संतोष ये कषाय नामक प्रमाद के शत्रु हैं. ज्ञानका हमेशा अभ्यास करना, रागद्वेप उत्पन्न करनेवाले इंद्रियोंके विषयोस अलग होकर एकान्त प्रदेशमें रहना, झानसे मनको स्वस्वरूपमें एकाग्र करना, इंद्रिय विषयौसे उत्पम होनेवाले रागद्वेषोंका स्मरण न करना, विषयमाप्ति होनेपर उनमें आदर न करना, ये सब कारण इंद्रियप्रमादके शत्रु हैं. इन विषयों का वर्णन इस प्रकार हैं. १ रागभावसे युक्त होकर प्रमादरहितमुनि सुंदर JEE स्त्रीके अंग नहीं देखते है. अथवा यदृच्छासे देखकर उनपर अनुरक्त नहीं होते हैं. द्वेषके वश होकर वे अशुभरूप देखना चाहते नहीं है ऐसा नहीं. अर्थात् अशुभरूप दखनपर उनक मनमें द्वेषभावना और सुंदररूप देखनपर राग भावना उत्पन्न नहीं होती है. यदृच्छासे अशुभरूप देखकर भी वे द्वेष नहीं करते हैं. ऐसे मुनिआन नेत्रद्रियोंको जीत लिया है ऐसा समझना. उत्तम गायन और वायके मनोहर स्वर और उत्तम युवतिओंके-खियाके कंठमेस निकले हुये मधुर भाषण जो आदरसे सुननेकी इच्छा नहीं रखते हैं और यदृच्छासे सुन पहनेपर उनमें आसक्त नहीं होते हैं तथा अनेक अमनोहर-कर्कश शब्द सुननेपरभी जिनको क्रोध आता नहीं है वे मुनि कर्णको जीतनेवाले समझने चाहिये. ३ कालागुरु, कुष्ट, केशर, तमालपत्र, कमल, चंपक वगैरहके मनोहर सुवासको जो आदरसे चाहते नहीं है. यहच्छासे ऐसे पदार्थोंका सुवास प्राप्त होनेपर जो उसमें आसक्त होते नहीं. तथा अशुभ गंधका संबन्ध होनेपर जो उससे द्वेष नहीं रखते हैं अथवा शुभगंका सेवन करनपर भी जो उसमें आसक्त नहीं होते हैं, वे मुनिराज धाणेंद्रियको जीतनेवाले समझन चाहिये. जो अतिशय सुंदर और विशिष्ट मधुर भोजनों के रसमें लोलुप नहीं होते हैं अथवा यदृच्छासे सेवन करके उसमें आसक्त नहीं होते है. अमनोहर रसोंकी सेवा करनेसे मनमें द्वेष भी उनको नहीं उत्पन्न होता है. यहच्छासे अमनोहर रस सेवन करनेका प्रसंग आपउनेपर जिनको द्वेष उत्पन नहीं होता है वे रसनेन्द्रियजता माने जाते हैं. सुन्दर शय्या, सुंदर खिया, और शुभ स्पर्श ये मन हरण करते हैं. परंतु मुनि रागवश होकर उनका सेवन करनकी इच्छा नहीं रखते हैं. यहाछासे सुन्दरस्प का सेवन करनेसे अनुरक्त नहीं होते हैं. पुनि मर्दन करना, वस्त्रसे अंगको ढकना, अंगको स्पर्श करना, विलेपन लगाना, आंखों में अंजन लगाना, ये कार्य नहीं करते हैं. इन १६५४ कृत्योंसे शरीरको सुख होता है. परंतु वैराग्य युक्त मुनीश्वर इनसे विरक्त रहते हैं. शीतस्पर्श, उष्णस्पर्शसे युक्त ऐसी भूमि, पर्वत, शीला और तृण इत्यादिकोंके अमनोहर स्पर्शके विषय में ये द्वेष नहीं करते है. जो मुनि अच्छे
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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