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________________ मूलाराधना १६५१ इन्द्रियाश्वा नियम्यते वैराग्यखलिनेष्टः ॥ उत्पथप्रस्थिता दुष्टास्तुरगाः खलिनैरिव ।। २९०९ ॥ furunarratतस्सा इंद्रियदुदीताश्वाः णिग्धिप्पति मिगृहांते निरुध्यते, केन दमणाणख लिहि प्रधानानि दमशानानि तान्येव सलिनानि ते।। शब्दादिषु वर्तमानानि इंद्रियज्ञानानि रागद्वेषमूलानि तानीबेंद्रियशब्दनोव्यंते तेषां चावानां निरोधस्तत्यज्ञानभावनया भवति । अथो रुपयोर्युगपदेकस्मिनात्मन्यप्रवृत्तेः । उपपथगामी उन्मार्गयायिनः । जट तुरगामिति यथाश्या निगृहांते । सहि सः खलः ॥ एवं मिध्यात्वा संयम कषायसंवरान्निरूप्य करणसंवरं व्याकरोति- मूलारा — इंदिय इष्टानिष्टरूपादिषु प्रवर्तनामानि चक्षुरादिज्ञानामि । मिथिष्यति निगृहांते । दमणानखलिंगनिदम प्रधानानि ज्ञानानि तत्वावधाः जाति खलीनानि इव वाजिनामिव रामद्वेन्द्रियशानां निरोधनिमित्तवान् । इंद्रि यज्ञानं हि इष्टानिष्ठे वा स्वविषये रानं द्वेषं वा जनयन्तदुपेक्षाचता ज्ञानेन प्रतिबध्यते । योपयोग बुगपदेकस्मिन्नागम्यप्रवृत्तेः ॥ मिथ्यात्यसंवर और कषाय संवरका निरूपण किया. अब इंद्रिय संवत्का वर्णन करते हैं अर्थ--इंद्रियरूपी दुष्ट घोडों को दमगुणकी मुख्यनासे युक्त ऐसे ज्ञानरूपी लगामोंसे जो पुरुष वश करते हैं. शब्द, स्पर्श, रस वगैरह विषयों में प्रवृत्ति करनेवाले इंद्रियज्ञानोंको रागद्वेषही कारण हैं, अर्थात् रागद्वेषसे इन्द्रियज्ञानकी प्रवृत्ति स्पर्शादि विषयों में होती हैं. इस गाथामें इंद्रियज्ञानको ही 'इंद्रिय' कहा है. इंद्रियज्ञानसे उत्पन्न हुए आका विशेष तस्वज्ञान की भावनासे होता है. स्पर्शादिविषयों प्रवृत्ति और तत्वज्ञान ये दोन उपयोग एकसमय आत्मा में नहीं होते हैं. एक समयमे दोन उपयोग उत्पन्न नहीं होते हैं ऐसा आगम में कहा है. उन्मार्गपर जानेवाले दुष्ट घोडों का जैसे लगाम के द्वारा निग्रह करते हैं वैसे तत्वज्ञान की भावनासे इंद्रियरूपी अश्वोंका निग्रह हो सकता है. अदिमणसा इंदिसप्पाणि णिहिदु ण तीरंति ॥ विज्जामंतोसघहीणेणव आसीवसा सप्पा || १८३८ ॥ नाक्षसर्पा निगृन्ते भीषणाञ्चलमानसः ॥ दशूका व ग्राह्या विद्यासंवादवर्जितः || ।। १९१० ।। आश्वास ७ १६५१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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