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________________ आश्वासा भूलाराधना मूलारा-तारिसगामेज्झमय शुचिद्रव्याणामशुचित्वापादनसमर्थनामंध्येन मुहलपचयेन निबृत्तं सत् । अन्य तारिसयममेज्यमय इति मत्यानुतंत्रमाहुः । तद्यथा-- तारक्षम मेध्यमयं शरीरक किं जलाभियोगेन ।। मेध्यं भवेद्विमेध्येनामेध्यमयो घटो भवति ॥ अर्थ-पवित्र पदार्थोको अपवित्र बनानेवाला यह शरीर जलादिकोंके द्वारा शुद्ध कैसा हो सकता है। विष्ठास भरा हुआ घट क्या पवित्र हो सकता है ? नहीं कभी नहीं. यदि शरीमचि किं ताई शुचीत्यवाह--- णवरि हु धम्मो मेज्झो धम्मस्थस्स वि णमंति देवा वि ॥ धम्मेण चेब जादि खु साहू जल्लोसधादीया ॥ १८२०॥ भवन्ति जल्लोषधयो मुनीन्द्रा धर्मेण देवाः प्रणमन्ति सेन्द्राः ।। पतस्ततो नास्ति ततः प्रशस्ता कल्याणविश्राणनकल्पवृक्षः ॥ १८२१॥ इति अशुच्यनुपक्षा। विजयोदया-वरि दुधम्मामी धर्मः पुनःन्ति । करमार बुझदो पदार्थ वर्तते । धम्मत्स्स घि पामेति देवादि यस्मादमें रत्नत्रयात्मके स्थितस्य देवा अपि नमस्कारं कुर्वति॥धर्मेण शुचिना योगादाम्मापि शुचिरिति, धम्मण व जादि ग्यु साधू धर्मेणैव प्राप्नुवैति साधवः । किं अलोसघादीया जल्लीपच्यादिकमुस्पति शयं ।। मशुभसं ।। योमवशुचिः कायः किं तर्हि पर शुचि इत्यवाह मूलारा---- णवरि केवलं । चरि हु इति पाठे धर्म एत्र केवल मेध्य इत्यर्थः। धम्मत्थरस रत्नत्रये तिष्ठतः साधोः। जल्लोसधादीया सर्वांगीणमलौषधविष्ठौषधप्रभृसिकाः ।। अशुचित्वानुप्रेक्षा ॥ अर्थ-इस जगतमें धर्म ही पवित्रतम वस्तु है, जो रत्नत्रयात्मक धर्ममें स्थिर है उसको देव भी बंदन करते हैं. इसके संयोगसे आत्माभी पवित्र हुआ है. साधु धर्मके प्रसादसेही जल्लोपवादि ऋदीको प्राप्त कर सकते हैं. अशुचित्वानुप्रेक्षा समाप्त १६३३ २०५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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