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________________ थलारायना आश्वासा - - के दुसरे समय में उत्पत्र दुआ. आयुष्य समाप्त होनेपर फिर मरा. वहीं जीच तीसरी उत्सर्पिणी के तीसरे समयमें उत्पन्न हुआ. इस प्रकार इस जीवने क्रमसे उत्सर्पिणी काल समाप्त किया. इसी प्रकार जन्मसे उसने अवसर्पिणी कालभी पूरा किया. मरणकी निरंतरता जन्मकी निरन्तराके समान समझनी चाहिये. इतना यह स्वरूप कालपरिवर्तनका है ऐसा समझना चाहिये, आगममें इस विषयमें ऐसा कहा है यह जीय उत्सर्पिणी और अवसापणी कालकी संपूर्ण समय पंक्तिओंमें कालसंसारमें भ्रमण करता दुआ अनंतवार भ्रमण कर चुका है. स्पंदनंससारं निरूपयन्युत्तरमाथा अठ्ठपदेने मुत्तूण इमो सेसेसु सगपनेस ॥ तन्तैपि व अधरणं उव्वत्तपरतणं कुणदि ॥ १७७९ ॥ प्रदेशाष्टकमत्यस्य शेषेषु कुरुते भवी ॥ उदर्शनपरावत संतप्ताप्स्विव दुलाः || १८४८ विजयोदया-अठ्ठपदेसे मुत्तृण अष्टी प्रदेशारुचकाकारान् मुक्त्वा । इसो अयं जीधः। सेससु सगपदेसेसु शेषेषु स्वप्रदेशेषु क्षेत्रषु । संसारनामात्मनः क्षेघसंसारत्वेनोच्यते ॥ स्वप्रवेशलक्षणक्षेत्रसंसरणरूपं क्षेत्रसंसारात्मकस्पंदनसंसारमाह--- भूलारा-अठ्ठपदेसे अष्टौ प्रदेशात चकाकाराम् । ततंपिअसहणं तमियाधिश्रयणम् । ततजलमध्यस्थिलतंयुल. धरित्यर्थः । उक्त्तणपरसणं उद्धर्तनपरावर्तन । उसोच प्रदेशाष्टकमस्यस्य शेषेषु कुरुते भवी ॥ उद्वर्तनपरावर्त तप्तास्वस्विप संडुलाः ॥ स्पंदन संसारका वर्णन अर्थ-रुचकाकार आठ प्रदेश छोड़कर बाकी के सर्व आत्म प्रदेश हमेशा चंचल रहते हैं और जैसे अग्नीसे गरम जलमें डाले हुए चावल इमेशा उपर नीचे होते हैं वैसे इस संसारी जीवके आठ मध्यप्रदेश छोड़कर बाकीके प्रदेश हमेशा ऊपर नाचे हमेशा घूमते हैं.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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