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________________ मुलाचना १४ १ अाणि मदानि तीदे काले हति । बालमरणान्यनंतानि गतीतकाले मृतानि । ननु मिथ्यादर्मरणं बाबालमरणं त सुज्यतेऽपि विद्यते इति वालमरणानीत्युक्तं । ========== तवा श्रद्धाने को दोषो येन तत्सम्यक्त्वभावतया निरस्यते इत्यत्राह – मूलारा सुविद्दिदं द्रष्टेष्टावि पूर्वापविरोधहने वा । केचित्तु सुबिदि इति पठति । ६ सुचरित्र इति व्याख्यानयंति च । इमं इदं गुरुपर्वक्रमायातं इमिणा अनेन स्वसंवेदनसिद्धेन । बालमण्यानि बालबालमरणानि बाह्यत्वसामान्यस्य बालबालेऽपि विद्यमानत्वात् । सीदे अतीते । मदाणि मृतानि प्राप्तानि धातूनामनेकार्थत्वात् । F वस्तुके यथार्थ स्वरूपमें श्रद्धा न करनेसे कौनसा दोष उत्पन्न होता है. कि जिसको यथार्थ श्रद्धान की भावनाके द्वारा दूर करना पडता है. ? ऐसी शंका होनेपर अश्रद्धानले उत्पन्न हुए दोषका माहात्म्य वर्णन करनेके लिये उत्तर गाथा कहते हैं हिंदी अर्थ --- यह जिनागम पूर्वापरविरोधादिदोषरहित है. और वस्तुकें यथार्थस्वरूपका ग्रहण करनेवाले ज्ञानको उत्पन्न करता है. परंतु ऐसे आगमके ऊपर अश्रद्धान करनेसे इस जीवने अतीत कालमें- भूतकालमें अनंत चालबालमरण किये हैं. शंका मिथ्यादृष्टीके मरणको बालबालमरण कहते हैं और आप उसके मरणको चालमरण कहते हैं, उत्तर --- बालत्व नामका सामान्य धर्म बालबालमरणमें भी विद्यमान है इसलिये उसको बालमरण कहते हैं. कीदृशी मितिः कार्या संसारभीरुणा णिग्गंथ पञ्वयणं इणमंत्र अणुत्तरं सुपरिसुद्धं ॥ इणमेव भोक्खमग्गोत्तमदी कायव्विया तम्हा ॥ ४३ ॥ इदमेव बची जैनमनुत्तममकल्मषम् || निर्भयं मोक्षवत्र्मेति विधेया धिषणा ततः ॥ ४६ ॥ विजयोदया- जिथं पव्वणं । प्रथनंति रचयन्ति दीघांकुर्वन्ति संसारमिति ग्रंथाः । मिथ्यादर्शनं, मिथ्या आश्रासः १४१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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